सन 2012 में नवम्बर या दिसंबर का महीना था, अफ्रीका के एक छोटे से देश मलावी के ‘कूला हाइड्रो पॉवर प्लांट’ में इलेक्ट्रिसिटी कमीशन ऑफ़ मलावी के प्रोजेक्ट इंचार्ज मफेट चिकूसे के साथ शाम की चाय पे बातें हो रही थी। मुझसे उम्र में करीब 15 साल बड़े चिकूसे, इंजीनियरिंग से लेकर अफ्रीकी देशों की सामाजिक संरचना के बारे में मुझे काफी सारी बातें बताया करते थे। उस दिन हम उसी साल मार्च में पश्चिम अफ्रीकी देश माली में हुए सैनिक विद्रोह की बात कर रहे थे, साथ ही उन्होंने मुझे सोमालिया, रवांडा और डी.आर.सी. यानि कि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो के बारे में भी बताया। इसके साथ बातें, सैनिक विद्रोह और हिंसा में बच्चों के इस्तेमाल के बारे में भी हुई। कल शाम को नेटफ्लिक्स की एक फिल्म “बीस्ट ऑफ़ नो नेशन” देखते हुए एक बार फिर वो शाम याद आ गयी।
सालों से अफ्रीका के कई देश गृहयुद्ध और हिंसा की आग में जल रहे हैं और इस हिंसा का सबसे काला पहलू है, बाल सैनिक यानि कि चाइल्ड सोल्जर्स, “बीस्ट ऑफ़ नो नेशन” इसी मुद्दे पर बात करती है। 2015 में आयी यह फिल्म, नाइजीरियाई लेखक उज़ोडिन्मा इवेला के इसी नाम से लिखे एक उपन्यास पर आधारित है। फिल्म का निर्देशन किया है कैरी जोज़ी फुकुआंगा ने और मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं इदरिस अल्बा और घाना के बाल कलाकार अब्राहम आटाह ने।
ये फिल्म कहानी है करीब 10 साल के बच्चे ‘आगू’ (अब्राहम आटाह) की जो गृहयुद्ध से जूझ रहे पश्चिमी अफ्रीका के एक काल्पनिक देश में अपने परिवार के साथ रह रहा है। हिंसा की चपेट में आकर आगू के पिता और भाई अपनी जान गँवा देते है और उसकी माँ और बहन उससे बिछड़ जाते हैं। अपनी जान बचाने लिए जंगल में छिपा आगू, एक विद्रोही दल के बीच फंस जाता है जिसके ज़्यादातर लड़ाके बच्चे हैं और इस दल का ‘कमांडेंट’ (इदरिस अल्बा) आगू को एक सैनिक बनाने की बात कहकर उसे अपनी बटालियन में शामिल कर लेता है। इससे आगे की कहानी जानने के लिए बेहतर होगा कि आप खुद ही फिल्म देखें।
10 साल के एक बच्चे की कश्मकश जिसे एक वयस्क की तरह सोचने पर मजबूर कर दिया गया है, फिल्म के एक सीन में बहुत खूबसूरती से दिखाई देती है जब आगू सोच रहा है कि युद्ध ख़त्म हो जाने के बाद भी वो एक आम बच्चे जैसा नहीं रहेगा। यह फिल्म खासतौर पर आगू के ही किरदार के चारों और घूमती है, लेकिन सत्ता और नियंत्रण की चाह में कुछ भी करने का इरादा रखने वाले ‘कमांडेंट’ के रोल को इदरिस अल्बा ने बेहद सटीकता से निभाया है। बैकग्राउंड म्यूजिक और कैमरा वर्क भी फिल्म का एक सशक्त पहलू है। अगर अलग तरह के संवेदनशील सिनेमा में आप रूचि रखते हैं तो ये फिल्म आपके लिए ही है, साथ ही फिल्म के कुछ दृश्य बेहद हिंसक हैं तो बच्चों के लिए ये फिल्म अच्छा सुझाव नहीं है।
युद्ध की त्रासदी में किस तरह बच्चों का भविष्य तबाह हो जाता है, यह फिल्म इस बारे में एक मजबूत संदेश तो देती ही है साथ ही ज़मीनी हकीकतों को ध्यान में रखते हुए एक आशा की किरण भी दे जाती है। आज जिस जगह हम खड़े हैं वहां से युद्ध की त्रासदी को समझ पाना शायद आसान नहीं है, लेकिन बच्चों को हिंसा की आग में झोंक देने के मुद्दे पर दुनिया का ध्यान खींचने वाली ये फिल्म, हमारी समझ को बढ़ाने में एक अच्छा कदम साबित हो सकती है।
The post अफ्रीकी चाइल्ड सोल्जर्स की सच्चाई दिखाती ‘बीस्ट ऑफ़ नो नेशन’ appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.