कुछ दिन पहले एक आर्टिकल पढ़ा जिसका शीर्षक यानी टाइटल था SANITIZE NCERT HINDI BOOKS. इसमें कुछ लोग भाषा को शुद्ध करने की गुहार लगा रहे हैं और चाहते हैं कि हिन्दुस्तानी भाषा में से उर्दू ओर फ़ारसी शब्दों को हटा दिया जाए। शायद इन्हें ये नहीं पता कि अगर प्याज़ ढूंढने के चक्कर में उसके सारे छिलके उतारने की कोशिश करेंगे तो प्याज़ बचेगा ही नहीं। क्योंकि उसके छिलके ही प्याज़ हैं।
हमारी आम बोलचाल की भाषा में इतने सारे शब्द फ़ारसी और अरबी से आते हैं कि अगर उन्हें निकाल दिया तो लोग शायद आपस में बात ही नहीं कर पाएंगे। तो अब सवाल ये है कि आख़िर भाषा होती क्या है? क्या भाषा स्कृप्ट यानि कि लिपि होती है? क्या भाषा वोकेब्लरी या शब्दकोष होती है? या बहुत सी भाषाओं के शब्दों का एक घोल?
इसको समझने के लिए कुछ जानकारी जुटाई है, शायद इस जानकारी के बाद उर्दू-हिन्दी विवाद से कुछ पर्दा उठ जाए और आने वाला यूथ किसी भ्रम का शिकार ना हो। मैं ना तो उर्दू की नुमाइंदगी कर रहा हूं और ना हिन्दी की, बस हिंदुस्तानी भाषा क्या है और भाषा क्या होती है ये जानने की एक छोटी सी कोशिश की है।
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“मर तो नहीं गई है मगर मारी जा रही है! ये एक म्यूज़ियम पीस बनकर रह गई है। लोग बोलते हैं कि शायरी बड़े मज़े की होती है उर्दू की। it’s a source of entertainment at it’s best. ये एक इंतिहाई जीती जागती, ख़ूबसूरत और बहुत ही अच्छी वैल्यूज़ की ज़बान है। जिसके साथ पिछले सौ बरस में बहुत सी गड़बड़ें हुई। दरअसल ज़बान जो है वो रीजन्स (या क्षेत्रों) की होती है। मसलन जर्मनी की ज़बान जर्मन है, फ्रांस की ज़बान फ्रेंच है, रशिया की ज़बान रशियन है, पंजाब की ज़बान पंजाबी और बंगाल की ज़बान बंगाली है।
आपने कभी सुना है? मैंने तो नहीं सुना कि ज़बान किसी रिलिजन (या धर्म) की हो। ज़बान रिलीजन की कैसे हो सकती है? तो पहले ये झूठ बोला गया कि उर्दू किसी एक कौम की ज़बान है, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? ये दस करोड़ बंगाली जिन्होंने पाकिस्तान से लड़कर बांग्लादेश बनाया, क्या उर्दू उनकी ज़बान है? क्या केरल में जो मुस्लिम लोग रहते हैं उर्दू उनकी ज़बान है? बशीर या क़ाज़ी नज़्रउल इस्लाम अपनी-अपनी ज़बानों के महारथी थे, एक मलयालम के और एक बंगाली के। तो उर्दू उनकी ज़बान थी क्या?
प्रेम चंद, कृष्ण चंद्र और बेदी की ज़बान क्या थी? क्या वो उर्दू नहीं थी? खैर लोग इससे वाकिफ़ नहीं है और ये झूठ बोला गया टू नेशन थ्योरी को फुलप्रूफ बनाने के लिए। उर्दू वो ज़बान है जिसने इसी देश में जन्म लिया और 1798 में जब शाह अब्दुल क़ादिर ने पहली दफ़ा क़ुरान का तर्ज़ुमा उर्दू में करा तो उनके ख़िलाफ़ फ़तवे जारी हो गए कि मुक़द्दस किताब का तर्जुमा इस क़दर ख़राब ज़बान में कैसे कर दिया। फिर 1857 के बाद टू नेशन थ्योरी को जन्म दिया गया और लोगों ने भी उसे हाथों हाथ ले लिया। फिर जो वेस्टर्न इंट्रस्ट के लोग थे उन्होंने इसको ज़बरदस्ती ये दर्जा दे दिया कि उर्दू एक ख़ास कौम की ज़बान है।
हक़ीक़त तो ये है कि दुनिया की उन चंद ज़बानों में से एक उर्दू है (क्योंकि दूसरी ज़बान मुझे मालूम नहीं इसलिये मैं अहतियातन चंद बोल रहा हूं) जिसमें शुरूआती दिनों में जब पोयट्री लिखी गयी तो पहले ही दिन से ही वो एंटी फंडामेंटलिस्ट (कट्टरपंथ विरोधी) और थी और लिबरल वैल्यूज़ (उदारवादी सोच) को बढ़ावा देती थी। वरना आम तौर पर लिटरेचर में आप देखेंगे तो शुरुआत में धार्मिक पोयट्री ही हुई है और फिर धीरे-धीरे दूसरे टॉपिक आए हैं।
उर्दू में ऐसा नहीं है। मेरे फ़ादर (जाँ निसार अख़्तर) ने एक वॉल्यूम एडिट किया था ‘हिंदुस्तान हमारा’ जिसमें कई सौ बरस की जो उर्दू पोयट्री है उसमें हिंदुस्तान से मुताल्लिक़ शायरी है। (उसे पढेंगे तो) आप हैरान हो जाएंगे, मैं तो समझता हूं कि होली दीवाली पे उर्दू से बेहतर शायरी नहीं मिलेगी आपको। राम, कृष्ण, शिव, पार्वती पे क्या शायरी है, मौसमों, फ़सलों पे कितनी हैं, हिस्टोरिकल इवेंट्स जो हिन्दुस्तान के हैं उन पर कितनी हैं, हिन्दुस्तान के रिलीजियस आईकान्स जो हैं उन पर कितनी हैं। लोग इन चीज़ों से वाकिफ़ नहीं हैं। (उर्दू शायरी को) लोग तो ये समझते हैं कि बस शराब, महबूब ये-वो!
उसके बाद थर्टीस (तीस के दशक) में प्रोग्रेसिव राइटर मूवमेंट आया जो कि पैन इंडियन था, सारी ज़बानों के राइटर उसमें शामिल थे। उसमें galaxy of stars! उर्दू लिट्रेचर ने पैदा किए, वो कृष्ण चंद हों, इस्मत हों, बेदी हों, मजाज़ हों, फ़ैज़ हों, साहिर हों, वो मजरुह हों, कैफ़ी आज़मी हों, सरदार जाफ़री हों कि जाँ निसार अख़्तर हों। इनकी शायरी जो है वो प्रोगरेसिव और लिबरल वैल्यूज़ की शायरी थी। तो उर्दू तो लिबरल, प्रोग्रेसिव और तरक्कीपसंद ज़बान हमेशा से रही है, इसका लिट्रेचर वही है, बस इसके बारे में लोग जानते नहीं हैं।
फिर ज़बान होती क्या है?
क्या ज़बान अपनी स्क्रिप्ट है? अगर ज़बान स्क्रिप्ट है तो यूरोप की तमाम ज़बाने एक हैं, क्योंकि लेटिन ही स्क्रिप्ट ली है सबने। पंजाबी तीन स्क्रिप्ट में लिखी जाती है, पंजाबी गुरुमुखी में लिखी जाती है, देवनागरी में भी लिखी जाती है और फ़ारसी रस्मो-उल्ख़त में भी लिखी जाती है, मगर रहती पंजाबी ही है। अगर मैं लिख दूँ kuchh kuchh hota hai तो क्या ये अंग्रेज़ी हो गई? कुछ कुछ होता है तो हिंदुस्तानी ही रहा ना। अच्छा! तो स्क्रिप्ट नहीं है ज़बान। तो फिर मैं अगर ये कहता हूं कि ये hall air-conditioned है, अब यहां मैंने hall भी अंग्रेज़ी का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया और air-conditioned भी, बस इसमें मामूली सा “ये” और “है” लगा हुआ है, तो क्या मैं अंग्रेज़ी बोल रहा हूं? आप कहेंगे नहीं मगर हां आपने अंग्रेज़ी के दो लफ़्ज़ इस्तेमाल किए लेकिन अंग्रेज़ी नहीं बोल रहे। क्यों? क्योंकि मेरा Syntax हिंदुस्तानी का है, जी हां Syntax होती है ज़बान।
ज़बान अपनी वोकेबलरी (शब्दकोष) भी नहीं होती लफ़्ज़ आप कहीं से भी ले सकते हैं, ज़बान अपना ग्रामर (व्याकरण) और वोकेबलरी ख़ुद होती है। अब ये देखिए कि उर्दू का Syntax क्या है? उर्दू का Syntax है खड़ी बोली से। खड़ी बोली एक डायलेक्ट (बोली) है जो कि दिल्ली, वेस्टर्न यु.पी., हरियाणा इन सब इलाकों में बोली जाती थी। तुम आ रहे हो, मैं जा रहा हूं, तुम कैसे हो, खाना खाओगे, ये कौन से लफ़्ज़ हैं? ये खड़ी बोली के लफ़्ज़ हैं और इसे खड़ी बोली इसलिए बोलते थे क्यूंकि इसमें “आ” की साऊंड बहुत है। अब यही आप अवधि में बोलेंगे तो “ऊ आवत है” और खड़ी बोली में वो आ रहा है तो “आ” “रहा” जैसे सीधे लफ़्ज़ इसमें बहुत हैं। इस वजह से इसे खड़ी बोली बोलते हैं। आज से कोई आठ सौ बरस पहले क्योंकि फ़ारसी उपलब्ध थी और फ़ारसी उस ज़माने की linguae franka (एक ऐसी कॉमन भाषा जिसे बहुत से अन्य ऐसे लोग इस्तेमाल करते हैं जिनकी वो मुख्य भाषा नहीं है) थी जैसे आज अंग्रेज़ी है। तो ज़्यादातर लोग फ़ारसी ही इस्तेमाल करते थे जिनकी मदर टंग फ़ारसी नहीं थी, वो भी इसे इस्तेमाल करते थे। सरकारी ज़बान फ़ारसी हुआ करती थीं, तो ये उस वक़्त की स्क्रिप्ट थी, फिर जब उस खड़ी बोली को फारसी में लिखा जाने लगा तो उस बोली को कहा जाने लगा कि “ये है उर्दू।
काफ़ी अरसे के बाद यही खड़ी बोली जो संस्कृत की स्क्रिप्ट देवनागरी में लिखी जाने लगी तो कहा गया “वो हिन्दी है।” तो दरअसल जो syntax है वो इन दोनों ज़बानों का एक है। अब वक़्त के कुछ ख़ुद-ब-ख़ुद कुछ कल्चरली, हिस्टोरिकली और कुछ बहुत ही इंटेंशनली दोनो भाषाओं की वोकेबलरीज़ को अलग करने की कोशिश की गई है। लेकिन उसके बावजूद हमारे फ़ारसी के लफ़्ज़ बहुत हैं हमारी बोलचाल में। हमें मालूम भी नहीं होता कि ये फ़ारसी के लफ़्ज़ हैं। मसलन आप अगर हिन्दी की डिक्शनरी लेंगे तो उसमें लगभग पांच हज़ार लफ़्ज़ Persian rooted (फारसी मूल के) मिलेंगे और अगर उर्दू की डिक्शनरी लेंगे तो तक़रीबन 75% लफ़्ज़ आपको संस्कृत रूटेड मिलेंगे। इन सबके बावजूद उर्दू एक सच्ची हिन्दुस्तानी ज़बान है, ज़मीन से इसका ताल्लुक़ है। ये बादशाहों और नवाबों की बनाई हुई ज़बान नहीं है, उन्होंने तो बहुत दिनों तक इसे नकारा था। अंत में मजबूरी में इन्हें मानना पड़ा कि नहीं भाई ये तो हमें अपनानी पड़ेगी। मुग़ल दरबारों की ज़बान उर्दू थोड़ी थी, बस वो मुग़ले आज़म में ही बोलता था अकबर उर्दू। शायद अकबर को तो मालूम ही नहीं होगा कि उर्दू भी कोई ज़बान है।”
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कुछ शब्द जो हम ज़्यादातर प्रयोग करते हैं फ़ारसी से लिए गए हैं।
साया-(shadow) परेशान -(distrassed) हमेशा-(always) ख़ुशी -(happiness) सब्ज़ी-(vegetable) मेहरबानी -(kindness)
दीवार -(wall) दरवाज़ा-(door) ताज़ा(fresh) रोज़-(daily) शहर-(city) शराब-(wine) पर(wings) पसंद (liked) ख़्वाब (dream)
गिरफ़्त या गिरफ़्तार(grip) आइन्दा(future) परिन्दा(bird) ज़िंदा(alive) बस्ता(bag) पसंदीदा(favorite) मुर्दा (dead) ख़रीदना(to buy)
गुज़रना(to pass-intransitive) गुज़ारना(to pass-Transitive) परवरिश(care) कोशिश (effort) वर्ज़िश(exercise) आज़माना(taking test)
कोफ़्ता(Indian cookery-a savoury balls of vegetables or paneer) कुलचा, कुर्ता, मैदान, नान, पनीर, ज़मीनदार, ज़मीन,
कुछ शब्द जो हम ज़्यादातर प्रयोग करते हैं पुर्तगाली से लिए गए हैं।
नाव-(boat) अनन्नास (pineapple) बाल्टी (bucket) चाबी (key) गिर्जा(church) अलमारी (cupboard) बोतल(bottle)
कुछ शब्द जो हम ज़्यादातर प्रयोग करते हैं टरकिश भाषा से लिए गए हैं।
क़ैंची (scissors) तमग़ा(medal)
कुछ शब्द जो हम ज़्यादातर प्रयोग करते हैं अरबी भाषा से लिए गए हैं।
अमीर(rich) दुनिया(world) हिसाब(calculation) क़ुदरत(nature) नसीब(fate) अजीब(unusual) वक़्त(time) क़लम(pen)
किताब(book) क़रीब(near) सही(right) ग़लत(wrong) ग़रीब(poor) क़ानून(law) ख़बर(news) अख़बार(newspaper)
क़िला(fort) कुर्सी(chair) शरबत(drink/beverage) क़मीज़(shirt) ज़रुरी(important) सफ़ेद(white) अफ़सोस(guilt)
ख़िलाफ़(against) तरफ़(at) ज़रूर(certainly) अकसर(often) ख़त्म(over/finished) ज़्यादा(much) साफ़(clean) मज़बूत(strong)
The post जावेद अख्तर बता रहे हैं क्या है हिन्दुस्तानी ज़बान appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.