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पुरानी दिल्ली: जो दिल से ज्यादा ज़ुबां पर बसती है

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चेहरे पर सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है,
जो दिल का हाल है, वहीं दिल्ली का हाल है
-मंज़ूर अहमद 

पुरानी दिल्ली के नाम में ‘पुराना’ जुड़ा है लेकिन यहां पहुंचकर बहुत कुछ महसूस होता है। गलियां संकरी हैं, या यूं कहूं बेहद संकरी। यहां पहुंच कर आप कोई निशानी छोड़ कर आए या न आए ढेरों निशानी लेकर कर ज़रूर आएंगे। यादों के किसी कोने में…

Jama Masjid Of Delhi
जामा मस्जिद

कुछ महीने पहले तक यहां पहुंचने का रास्ता थोड़ा लम्बा था लेकिन अब काफी बेहतर हो गया मेट्रो की हेरिटेज लाइन की वजह से। यहां के मेट्रो स्टेशन को बिलकुल पुरानी दिल्ली के रंग में भिगो दिया गया है, बिलकुल उसी नैन, नक्श और नक्कासी में। स्टेशन पहुंचते ही आदमी का मूड बन जाता है। वैसे मूड तो आदमी बना ही होता है, तभी तो वो यहां तक आया है, वरना दिल्ली कोई छोटी थोड़ी है। उड़ के आदमी कहीं भी जा सकता था।

…तुमसे मिलना पुरानी दिल्ली में
छोड़ आई निशानी दिल्ली  में
बल्ली मारा से दरीबे तलक 

तेरी मेरी कहानी दिल्ली में…

स्टेशन से निकलते हैं, छोटी से पतली सी गली, फेरी वालों की ढेरों दुकानें, दुकानों के सामने ग्राहकों को मेला, दुकानदारी, करनी हो तो, ठहर के तबियत से समय काटा जा सकता है यहां रुक कर, वरना भैया-भैया कहते हुए तीर की तरह भीड़ भेदते हुए आगे बढ़ते हुए, निकल जाइये। रास्ते में आपको पूरा बाज़ार मिलेगा, जहां मिलेगा ज़रूरत का बेइंतहा सामान। एक बात और, खरीदारी वाले तो ठीक हैं लेकिन खाने वालों की भीड़ भी यहां कम नहीं होती।

धुआंदार कबाब के शौक़ीन से लेकर रोस्टेड चिकन के मुरीद तक, हर शाम यहां थालियों में अपनी ज़ुबान टेकते नजर आएंगे। एक बात और, आप दुर्दांत नॉन-वेज हो या खालिस वेज यहां पहुंच कर पानी टपकना तय है, नॉन-वेज हो तो यहां-वहां नज़रे टकराकर जुबां पानी फेंकेगी और वेज हो तो ये सब देख कर आंखे।

वैसे ये तो बस कहने की बात है, अगर आप शुद्ध शाकाहारी भी हैं तो यहां आपके पास रोटी-बोटी वालो की ही तरह तमाम चीज़े खाने के लिए मौजूद है, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।

वैसे ऐसा ज़रूरी नहीं है कि आप पुरानी दिल्ली आए हैं, और किसी दुकान में पर गरमा-गर्म पक कर सुनहरे हो चुके शाही टुकड़ों को देख रुक जाएं, जिसकी हल्की-हल्की सी भीनी खुश्बू आपकी नाक से होते हुए, पेट में पहुंच कर गुदगुदी सा करे। न चाहकर आगे की तरह बढ़ते कदम सामने सड़क की तरफ जाने की बजाए बिदक कर दुकान की तरफ मुड़ जाए। किसी टेबल पर तशरीफ़ टिका कर आप बदहवास ही बस कह दें, ‘भैया! एक प्लेट’। कुछ देर बाद आपकी, थाली में कुछ भूरे रंग में रंगा मीठी चासनी डूबा शाही टुकड़ा पहुंचे और, डपट कर उसे झपट, ज़ुबान में बस समेट लें।

Old Delhi Market
पुरानी दिल्ली का बाज़ार

हो सकता है ऐसा न भी हो, कुछ लोग की दृढ़शक्ति और मनोबल के पक्के होते हैं। तो वो इसे बनाए रखें और इतना कुछ होते हुए देखकर अनदेखा कर दें, और भी बिना कोई प्रतिक्रिया दिए आगे बढ़ जाए। ये रास्ता जामा मस्जिद के ठीक सामने का है, भीड़ हो सकती है, धक्का मुक्की भी हो सकती है। पैर तो संभाल लोगे लेकिन ज़ुबान की गारंटी कोई नहीं लेता यहां। मन चंचल है, चुनचुना ही जाएगा, कितना भी रोक लो। इस दुकान में नहीं तो दूसरी दुकान में सही। यहां कुछ दूर आगे तरबूज़ का शेक मिलता है। वैसे मिलता तो बहुत कुछ है। नज़रें कांटा हैं, ये बाज़ार तालाब और ये जितना कुछ जो लज़ीज़ दिख रहा है, ये सब मछली। कहां अटकोगे तुम्हे खुद भी नहीं पता होगा।

तो आओ बात करते हैं, यहां के तरबूज़ वाले शेक की। रस-भरे तरबूज़ों को बिलकुल महीन-महीन काट कर, दूध और चीनी मिलाकर यहां परोसा जाता है। वैसे इस तरह की बाज़ार लखनऊ में भी लगती लेकिन कुछ-कुछ ऐसी ही अमीनाबाद और चौक की। लेकिन ऐसा कुछ कभी वहां नहीं दिखा। हल्के गुलाबी रंग के इस तरबूज़ के शरबत को गौर से, कोई देख ले तो इसकी मिठास आंखों में घुलती है, और जो चख ली तो ज़ुबान पर। इसके अलावा नज़रें घुमा लो तो, काजू शेक, बादाम शेक, रबड़ी न जाने क्या-क्या, यहां इतना कुछ है, कि दो बार पेट भर जाएगा लेकिन एक बार मन नहीं भर पाओगे।

A Fruit Shake Shop At Old Delhi
पुरानी दिल्ली में तरबूज़ शेक की एक दुकान

भीड़-भरे इस बाज़ार में एक हिस्सा ऐसा भी है। जो इस भीड़-भसड़ से एकदम अलग है, अलग, चुप एकदम। जो इस सारे बाज़ार को गौर से देखता है, टिमटिमाती रौशनी को, फेरी वालों के शोर को, सड़क पर चलती गाड़ियां, सब है लेकिन फिर भी वहां सब कुछ शांत है। बिलकुल किसी झील के पानी की तरह।

जामा मस्जिद के गेट से अन्दर घुसते ही सामने बनी तमाम सीढियाों का अहसास बिलकुल ऐसा ही। वहां तेज़ रौशनी नहीं, गुप्प सन्नाटा भी नहीं है।

थोड़ा शोर है और थोड़ी मद्धम रौशनी। सीढियों की थोड़ी ऊंचाई में बैठने के बाद आपकी आंखों के सामने सारा बाज़ार तैर जाएगा। सन्नाटे भरे, इस कोने में बाज़ार को देख सकते, वो भी शोर के हल्के बैकग्राउंड स्कोर के साथ। यूं तो ये बाज़ार ही बहुत खूबसूरत लेकिन ये जगह शायद सबसे ज्यादा।

Jama Masjid/Mosque Of Delhi
शाम के वक्त जामा मस्जिद

सारा बाज़ार घूमने के बाद इस जगह पर बैठकर बड़ा अच्छा लगता है। यहां कुछ समय गुज़ारा जा सकता है। इसके अलावा अगर आप मस्जिद के अन्दर प्रवेश करना चाहे तो वहां भी जा सकते है। बस इसके लिए आपको अपने जूते या चप्पल वहीं दरवाज़े पर उतारने होंगे। कुछ समय गुज़रने के बाद वापस उन्हीं रास्तों से मेट्रो स्टेशन वापस घर की ओर बढ़ा जा सकता है, हां! एक बात और वापसी में आपको गलियां इतनी संकरी नहीं लगेंगी, रात होने के साथ पुरानी दिल्ली के इस इलाके में भीड़ भी धीरे धीरे कम हो जाएगी, सड़कों की एक तरफ आपको ड्राई फ्रूट्स के ढेरों दुकानें दिख जाएंगी। बाकी इसी रास्ते की पतली गली को पकड़ आप मेट्रो के रस्ते अपनी गली पकड़ सकते हैं।

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