अभी कर्नाटक सरकार के द्वारा लिंगायत को मानने वाले लोगों को एक अलग धर्म का दर्जा देना बहुत ही चर्चित विषय बनता जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसे हिंदू धर्म को तोड़ने की कोशिश कहा है। सरकार के इस कदम को राजनैतिक और वोट बैंक की चाल समझा जा रहा है। निकट में होने वाले चुनाव को देखते हुए ऐसा कहना ठीक भी प्रतीत होता है। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार जाति, पाकिस्तान, कश्मीर और अयोध्या आदि जैसे मुद्दे को सरकारें, वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करती रही हैं।
धर्म, जाति, क्षेत्र आदि पर आधारित इस प्रकार की राजनीति आज के भारत का सच है। जहां शिक्षा-स्वास्थ्य कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाता और जातीय समीकरण काम कर जाता है। दंगा धार्मिक समुदायों के ध्रुवीकरण का काम करता है। यह भारत की जनता और राजनीति की एक सच्चाई है, जो सबको पता है, फिर भी यह बदस्तूर जारी है।
इन सबके बावजूद भी धर्म पर खुलकर बात करने की ज़रूरत है, इसे ढंकने-ढांपने की ज़रूरत कतई नहीं है। अगर लिंगायत के संबंध में बात करें तो मुझे लगता है कि अगर देश में एक बड़ी संख्या में लोग लोकतंत्र के दायरे में रहते हुए, कोई खास धर्म, विश्वास, विचार आदि को मानना चाहते हैं, तो मुझे नहीं लगता है कि इससे किसी सरकार, किसी अन्य धार्मिक समूह, किसी संगठन अथवा विचारधारा को मानने वाले लोगों को दिक्कत होनी चाहिए।
सच तो यह है कि प्राचीन काल से वर्तमान काल तक सैकड़ों महापुरुषों/ महास्त्रियों ने इस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, साथ ही सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में इसका प्रयोग किया।
बुद्ध और महावीर ने पशुओं की होने वाली बलि को रोका जिससे उस समय कृषि को बहुत नुकसान हो रहा था। उस वक्त समाज में व्याप्त आडम्बर, छुआछूत, अतिभोगवाद आदि का विरोध किया। यह सब अपने एक नए मत के माध्यम से किया, जिसे नास्तिक मत कहा गया। पूर्व में, चार्वाक अथवा लोकायत की परंपरा भी रही थी, जो किसी नियंता को नहीं मानते थे और कहते थे कि यही एक जीवन है।
मेरे हिसाब से तो व्यक्ति को किसी भी धर्म और विचार को मानने अथवा नास्तिक/ बिना धर्म के भी रहने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। उसी प्रकार सभी धर्मों के लोगों को अपने प्रचार-प्रसार और अभिव्यक्ति की पूरी सुविधा हो, बिना भेदभाव के। ऐसी सुविधा धर्म को न मानने वाले लोगों अथवा किसी विचारधारा को मानने वालों को भी होनी चाहिए।
बस ध्यान यह रखना चाहिए कि एक व्यक्ति अथवा समुदाय की स्वतंत्रता वहीं तक है, जहां तक वह किसी दूसरे व्यक्ति अथवा समुदाय की स्वतंत्रता में बाधक ना बने। आप राम को मानते हों या चार्वाक को, बुद्ध को या महावीर को, कबीर को या दादू को, ईसा को या मोहम्मद, मार्क्स को या कन्फ्युसियश को, पेरियार को या फुले को- इसमें किसी को अपनी नाक घुसाने की कतई ज़रूरत नहीं है।
ऐसा नहीं कि किसी धर्म विशेष के लोगों को सभा करना, जुलूस निकालने, अपने उत्साह को ज़ाहिर करने की स्वतंत्रता हो और दूसरे को नहीं। इस संबंध में भारतीय संविधान के निम्न प्रावधान देखकर कहा जा सकता है कि ये अधिकार हर नागरिक को प्राप्त है।
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार –
- अनुच्छेद 25: अंत:करण की और धर्म के अबोध रूप में मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 27: किसी विशिष्ठ धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय(पेमेंट) की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 28: कुछ शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता।
हां! सरकार को ज़रूर उस धर्म या विश्वास के लिए आवश्यक प्रबंध करने के लिए, एक संख्या तय करनी चाहिए जिससे कि यदि कम से कम उतनी संख्या में लोग उसे मानते हैं, तो उसको वह सुविधायें/ दर्जा प्राप्त हो। यह संख्या कितनी होनी चाहिए अथवा दर्जा मान्यता देने की क्या प्रक्रिया होनी चाहिए इसपर ज़रूर बात करनी चाहिए।
अभी आदिवासी भी लंबे समय से सरना कोड की मांग करते रहे हैं, पर उनको ज़बरदस्ती हिन्दू बताया जा रहा है। हालांकि वे बार-बार कह रहे हैं कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, सरना धर्म मानते हैं। किसी पर धर्म थोपने की कोशिश अपराध की तरह गंभीरता से लिया जाए। जिस प्रकार हिन्दू धर्म के स्वामी लोग ज़बरदस्ती किसी को हिन्दू कहते हैं, वह खतरनाक है। इस संबंध में कभी संघ, तो कभी शंकराचार्य स्वरूपानंद और कभी किसी और का बयां आता रहता है।
लिंगायत को लेकर अथवा सरना कोड की मांग को लेकर, इसमें संघ और दूसरे लोगों को बुरा मानने की ज़रूरत नहीं है। वैसे भी संघ को धर्म की ठेकेदारी किसी ने अथवा संविधान ने नहीं दिया है। फिर उनके प्रमुखों और समर्थकों का ऐसा व्यवहार क्यों?
इसी प्रकार धर्म परिवर्तन करने अथवा अपनी धार्मिक पहचान भी त्यागने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। संवैधानिक प्रावधानों के तहत देखें, तो यह अधिकार भारत के हर नागरिक को पहले से ही प्राप्त है। दिक्कत यह है कि भारत में धर्म सिर्फ विश्वास और पसन्द की बात नहीं है। यह सत्ता का सबसे प्रभावी हथियार है।
फोटो- Youtube स्क्रीनशॉट- Lathur Rally | Drone video 1 | Lingayat Religion
The post क्या लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देना गलत है? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.