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फिल्म तीसरी कसम और फणीश्वर नाथ रेणु की विरासत

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11 अप्रैल को हिंदी साहित्य के सुपरिचित हस्ताक्षर फणीश्वरनाथ रेणु की जयंती पड़ती है। रेणु अपनी कहानियों में अपने आप को ही तलाश करते नज़र आते हैं। आपने अपनी कहानियों, उपन्यासों में ऐसे पात्रों को गढ़ा जो यादगार बने। आप ‘हीरामन’ को ही याद करें। उनकी कहानी ‘मारे गए गुलफ़ाम’ आपने ज़रूर पढ़ी होगी। रेणु की इस महान कथा पर बनी बहुचर्चित फिल्म ‘तीसरी कसम’ की कथा तत्कालीन फिल्म कथा चलन से भिन्न थी।

हिन्दी फिल्मों का यह वह दौर था जिसमें कथानक हलचल, घटनाक्रम, उफान-ढलाव, आरंभ एवं चरमोत्कर्ष के कथा तत्वों से सराबोर रहा करता था। लेकिन शैलेन्द्र(गीतकार-निर्माता) की फिल्म साहित्य कथा का सिनेमाई रूपांतरण थी, कथा में बातचीत, मनोभाव, मानवीय संबंधो के सहारे प्रवाह आया। समकालीन चलन की तुलना में पात्रों का चरित्र चित्रण सत्यता,सादगी, संवेदनशीलता से पूर्ण था। अपने समय में ‘तीसरी कसम’ की दुनिया तमाम फिल्मों से जुदा रही, कथानक में मल्टी स्टार कास्ट उपयोग में नहीं है।

मुख्य कथा हीरामन-हीराबाई (राजकपूर-वहीदा रहमान) की है। इफ़्तिखार(ज़मीनदार) कृष्ण धवन (हीरामन का मित्र), सी एस दुबे( हीरामन का मित्र) अन्य पात्रों का किरदार निभा रहे हैं। पात्रों की अधिकता से कहानी के प्रवाह में अड़चन आती है, इस मामले में तीसरी कसम एक सपाट कहानी बुनती है। यह दो पात्रों की कथा : प्रेम धागे में बंधा एक ‘ग्रामीण’ जो हीराबाई को ‘हीरादेवी’ मानकर मोहित है, जबकि दूसरी ओर नौटंकी कलाकार‘हीराबाई’ इस निर्मल प्रेम को लेकर दुविधा में है। जब उसे अनुभव हुआ कि वह हीरामन के निश्छल प्रेम की सही हकदार नहीं, मोहभंग अंत में हीरामन का दिल टूट जाता है ।

कथानक के आरंभ में ही ‘हीरामन’(राज कपूर) से हम परिचित होते हैं, उसके पास एक बैलगाड़ी है। वह एक गाड़ीवान है, देहातों में माल व मुसाफिर को इधर-उधर ले जाकर कुछ कमा लेता है। इस आवाजाही क्रम में कभी-कभी वह थोड़े लालच के फेर में फंस जाता है। एक दफा चोरी के सामान को ले जाने के लिए पकड़ा गया, बड़े तरकीब से किसी तरह पुलिस से बचा। इसी तरह एक बार गाड़ी पर बांस ले जाने के क्रम में मुसीबत मोल ली, जखीरे को ले जाने में हीरामन की बैलगाडी एक घोड़ा गाड़ी से जा टकराई। निशानादार बल्लियों की नोक से किसी तरह टांगा चालक बच सका, फिर भी अंत में हीरामन मार खाता है। इन दो निर्णय के कारण फजीहत झेलने के बाद वह कसम खाता है कि अब फिर कभी गाड़ी पर चोरी का माल एवं जान जोखिम डालने वाले सामान नहीं ले जाएगा।

हीरामन का कारोबार अच्छा चल रहा था, कमाई रकम में से थोड़ा कुछ जमाकर एक बैलगाड़ी खरीदी मुसाफिर के आराम के लिए एक किस्म की फूसछत वाली गाड़ी थी, हीरामन उसे बड़े खुशी से घर लेकर जा रहा था कि सौभाग्य देखिए कि सवारी भी उसी वक्त मिल गई। एक महिला सवारी के दूर गांव ले जाने का प्रस्ताव उसे मिला। हीरामन सवारी के लिए राज़ी हो जाता है, बैलगाड़ी सवारी को लेकर सफर पर निकल पड़ती है। हीरामन भूत प्रेत और बुरी आत्माओं को मानता है, सवार होते वक्त वह महिला को चिकने सुंदर पांव पर उसकी नज़र पड़ी तो वह सतर्क हो गया। हीरामन के मन में संशय हुआ वह समझा कि सुंदरी के भेष में कोई बुरी आत्मा बैठ गई है। वह गाड़ी को एक मंदिर के पस रोककर पूजा अर्चना के लिए जाता है। वह जल्द ही वापस गा़ी को ओर पलटा और नज़र गाड़ी में लेटी महिला(वहीदा रहमान) पर टिकी। वह अचंभे में हुआ औऱ शायद समझ गया कि महिला कोई भूत-प्रेत नहीं।

अब वह थोड़ा सहज होकर गाड़ी हांकने लगा, दोनों में परिच सूत्र शुरू होता है। वहीदा रहमान बताती हैं कि वह एक नौटंकी कंपी में की कलाकार हीराबाई है, वह दूर गांव में लगे मेला को जा रही है। कंपनी कलाकार वहां कमाशा में नाच-करतब दखाएंगे। इस तरह हीरामन और हीराबाई की कथा बढ़ती है।

फिर यह सफर जारी रहता है, इस दरम्यान हीरामन और हीराबाई दोनों एक दूसरे को थोड़ा जान लेते हैं। बातचीत के दौरान हीरामन समझ लेता है कि हीराबाई एक साक्षर लड़की है। ग्रामोफोन, रिहर्सल जैसे कुछ अंग्रेज़ी शब्द बोल लेती है, साथ ही पढ़ाई और देश-दुनिया घूमने में आगे है। हीरामन मन ही मन समझ लेता है कि हीराबाई शहरी है। हालांकि शहरी फैशन व ताम-झाम वाला कोई दिखावा नहीं है, फिर भी वह हीरामन जैसी निपट देहाती नहीं है। दूसरी ओर हीरादेवी (वह हीराबाई को इस नाम से सम्बोधित करता है) भी हीरामन की सादगी से प्रभावित है, हीरामन की सुंदर आवाज़ में लोकगीत सुनकर वह मोहित है। हीरामन के बारे में कुछ और सूचना दी जाती है,  बचपन में ही उसका ब्याह हो चुका है। यह खेल पत्नी की मौत के साथ खत्म हुआ, और ब्याह ज़्यादा दिन नहीं टिक सका। उसके बाद हीरामन ने फिर ब्याह नहीं किया।

इस तरह एक सौम्य बंधन का जन्म हुआ, हीरादेवी की प्रतिभा को देखने के लिए वह गांव में रुकने का निर्णय लेता है। हीरादेवी भी तमाशा देखने वास्ते उससे रुकने को कहती है,अब हर रात तमाशा के फेर में वह उसके साथी थियेटर पहुंच जाते हैं। हीरादेवी की कला से सभी मंत्रमुग्ध हैं लेकिन हीरामन मन ही मन असहज हो रहा है। दरअसल जब से हीरादेवी के साथ उसने कुछ मोहक वक्त गुज़ारे हैं, वह खुद को एक अनजाने बंधन में महसूस करता है। एक सहज नोट पर शुरु हुआ सफर मोह व प्रेम का रूप ले चुका है, हीराबाई भी हीरामन में प्यार व इज्ज़त करने वाला एक सच्चा मित्र पाती है। हीरादेवी इस सुंदर बंधन को तोड़ने की इच्छुक नहीं फिर भी हीरामन को अंधेरे में नहीं रखना चाहती है। हीरामन को ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई से अवगत करने को तत्पर है, हीरामन का सादगी भरा दिल टूटना तय है। अब वह तीसरी कसम लेगा…

हीराबाई दुविधा की स्थिति में है, नौटंकी के बगैर खुद को अधुरा पाती है तो दूसरी ओर मन में प्रेम व सम्मान से बंधी है। हीरामन उसे ‘हीरादेवी’ नाम से संबोधित कर रहा है, उसे देवी की श्रेणी में रखता है। देवी अर्थात सत्य और पवित्रता की मूर्ति, किंतु हीरादेवी नौटंकी कलाकार है और हीरामन के मन में निर्मल प्रेम से वह थोड़ी असहज है। हीराबाई को पता है कि हीरामन उसे देवी रूप देखता है, लेकिन वह कोई देवी नहीं। वह आखिर कब तक वह सती-सावित्री बनी रह सकेगी, एक न एक दिन हीरामन ‘हीराबाई’ का सच जानेगा। एक दिन हीरामन का मोहभंग हुआ, दिल टुटने पर वह ‘तीसरी कसम’ लेता है।

कथानक,अभिनय ,निर्देशन के अतिरिक्त ‘तीसरी कसम’ का संगीत पक्ष भी काफी सुंदर था। शंकर-जयकिशन के संगीत से सजी इस फिल्म में ‘सजनवा बैरी हो गईल हमार, दुनिया बनाने वाले, सजन रे झूठ मत बोलो, पान खाए सैंय्या हमार, मारे गए गुलफाम, चलत मुसाफिर’ जैसे अच्छे गीत संग्रहित हैं।

शैलेन्द्र की ‘तीसरी कसम’ हिंदी सिनेमा में साहित्य का बेहतरीन रूपांतरण थी। तीसरी कसम फणीश्वरनाथ रेणु की रचना का सिनेमाई प्रतिबिम्ब बनके उभरी। महान कथाकार रेणु ने अनेक स्मरणीय कहानियां व उपन्यास लिखे। रेणु जी ने स्वयं को लेखक परिधि से आगे सामाजिक एक्टिविस्ट भी समझा।

आपकी ‘मैला आंचल’ व ‘परती परिकथा’ इसका जीवंत उदाहरण कही जानी चाहिए। टेलीविजन पर ‘मैला आंचल’ पर इसी नाम से धारावाहिक का निर्माण हुआ। वो टीवी के गोल्डन एज के दिन थे। आंखों के लिए विजुअल अनुभव बनाने में रेणु बेज़ोड़ थे। आपकी रचनाओं से गुज़रते हुए किसी फिल्म को देखने का अनुभव होता है।

रेणु ने कथा को आम जन के लिए आम जन द्वारा बनाकर पेश किया। आप में कथा को डेमोक्रेटिक टच देने का कमाल था। हीरामन भोला ज़रूर था लेकिन वो बेवकूफ नही था। जब एक राहगीर गाड़ीवान ने उससे पूछा, कहां जा रहे हो? हीरामन का जवाब देखें ‘छतरपुर पछीरा!’ आगे वो हीराबाई से कहता है, यह लोग हैं न हमेशा टोक देते हैं, इनको कोई दूसरा काम ही नहीं, अरे हमको कहीं भी जाना है, तुमको जहां जाना है जाओ ! रेणु जी की बात चल रही तो हमें उनकी कथा ‘ठेस’ को नहीं भूलना चाहिए, क्या कमाल की कहानी थी वो, सर्वश्रेष्ठ,मुख्य पात्र सिरचन का परिचय ही देखिए, सिरचन मुंहजोर है कामचोर नहीं।

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