परसों यानी 12 जून को जब ‘दंगल गर्ल’ बबीता फोगाट ने गर्वित होकर भारतीय राष्ट्रगान को यूनेस्को द्वारा विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान घोषित करने की सूचना ट्विटर पर शेयर की तो उन्हें एहसास भी नहीं होगा कि वह एक झूठी खबर पर विश्वास कर रही हैं। हालांकि बाद में उन्होंने इसका एहसास होने पर अपना ट्वीट डिलीट कर दिया है।
किसी सेलिब्रिटी द्वारा फेक न्यूज़ शेयर करने की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले शशि थरूर और शबाना आज़मी जैसे लोग भी फेक न्यूज़ के जाल में फंस चुके हैं। ऐसे कुछ उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि किस तरह से फेक न्यूज़ हमारे समाज पर शिकंजा कस चुकी है। फेक न्यूज़ हमारे समाज में वैमनस्यता और सांप्रदायिकता बढ़ाने के अलावा लोगों को गुमराह करने के लिए भी ज़िम्मेदार है।
आमतौर पर अल्प शिक्षित समाज, कम जानकारी होने की वजह से फेक न्यूज़ की चपेट में जल्दी आता है पर शशि थरूर जैसे शिक्षित लोग भी इससे अछूते नहीं है। भारत में फेक न्यूज के फैलाव के लिए फेसबुक और वाट्सएप मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है। कोई नियामक संस्था ना होने की वजह से इन माध्यमों से फेक न्यूज़ ज़्यादा आसानी और जल्दी फैलती है।वाट्सएप पर ‘डायन और बच्चा चोरी गैंग’ से संबंधित फेक न्यूज़ तो कई हत्याओं की वजह भी बन चुकी है।
लेकिन, फेक न्यूज़ का सबसे ज़्यादा और गलत इस्तेमाल राजनीति के क्षेत्र में होता है। फेक न्यूज़ यहां पर वोटों की फसल काटने के लिए काम आती है। फेक न्यूज़ से कोई भी दल अछूता नहीं है। सभी दल अपनी-अपनी सुविधानुसार फेक न्यूज़ फैलाते रहते हैं।
राजनीति के बड़े-बड़े चेहरे भी एक दूसरे पर निशाना साधने के लिए नई-नई फेक न्यूज़ गढ़ते रहते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि कभी-कभी खुद पत्रकार भी फेक न्यूज़ का शिकार हो जाते हैं। फेक न्यूज़ से समाज को बचाने वाले पत्रकारों का खुद फेक न्यूज़ का शिकार होना ठीक ऐसा ही है जैसे मरीजों का इलाज करते-करते खुद डॉक्टर वायरस का शिकार बन जाए। इसीलिए आज की पत्रकारिता पीढ़ी को फेक न्यूज़ से बचने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण की ज़रूरत है। मरीज को वायरस से बचाने के लिए खुद डॉक्टर को शिक्षित और सावधान होना ही चाहिए। फेक न्यूज़ के खतरों को भांपते हुए अगर इसे समय रहते विषय के रूप में स्कूली शिक्षा में भी जोड़ दिया जाए तो हमारे समाज के लिए ज़्यादा बेहतर रहेगा।
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