पश्चिमी या यूं कहें कि अमेरिकी संस्कृति से प्रभावित होने का फायदा भारतीय मनोरंजन उद्योग, व्यंग्यकारों, कंटेंट क्रिएटर्स, और अंततः दर्शकों को मिलेगा। सिनेमा में यथार्थवाद नाम की चिड़िया पश्चिम खासतौर से अमेरिका से ही भारत में आयी है।
व्यंग और आलोचना की भी पश्चिम में बेहद निडर परंपरा रही है। चाहे वो दो बार अपने कार्टूनिस्ट की जान गंवाने के बाद भी निर्भीक खड़ा फ्रांस का वीकली पेपर ‘शार्ली एब्दो‘ हो या वाइट हाउस में घुसकर ट्रम्प की बैंड बजाने वाले अमेरिकी स्टैंड अप कॉमेडियन ‘हसन मिन्हाज‘, या फिर ऑस्कर के मंच पर ही खड़े होकर अकादमी की नीयत पर सवाल खड़े करने वाले हास्य अभिनेता ‘क्रिस रॉक‘।
एसएनएल (Saturday Night Live) और द डेली शो जैसे शोज़ कई सालों (एसएनएल 43 सालों से और द डेली शो 20 सालों से) से चल रहे हैं जो कि क्रमश: सोशल कॉमेडी और पॉलिटीकल सटायर हैं।
अच्छी बात है कि अब भारत में भी लोग धीरे-धीरे इस तरह के कंटेंट को अपना रहे हैं, वो भी बड़ी तेज़ी के साथ। लेकिन, अभी बॉलीवुड को ‘फ्री कंट्री’ का कॉन्सेप्ट समझना बाकी है। अभी वो व्यक्ति पूजा और चाटुकारिता में ही लगा हुआ है।
भला हो इंटरनेट, सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लैटफॉर्म्स का, जिसने आज़ाद ख्याल लोगों को आपस में जुड़ने का मौका दिया। वरना ‘मुम्बई बेस्ड इंटरटेनमेंट सिस्टम’ ने हमें कॉमेडी के नाम पर कपिल शर्मा जैसा कूड़ा ही परोसा था।
एक और गज़ब की चीज़ है जो पश्चिम में ईजाद की गयी, और वो है ‘बियर बार’। यह दैनिक जीवन में सोशल इंटरैक्शन और मनोरंजन के लिए बहुत ही गज़ब टूल है। ‘बार’ वो जगह है जो हमेशा से स्थानीय प्रतिभाओं को आम जनता से सीधे जुड़ने का मौका, प्रोत्साहन और आर्थिक आधार देता आया है। कितने ही म्यूज़िशियन, मैजिशियन, कॉमेडियन, डांसर, सिंगर को इन्हीं बियर बारों ने पहला मौका या ज़िंदगी भर का रोज़गार दिया। ये परंपरा आज भी खूबसूरती से कायम है।
ऐसी कमाल की चीज़ों के ईजाद के लिए इन पश्चिमी, साम्राज्यवादी, पूंजीवादी देशों की ‘मेहनतकश’ जनता को थैंक्स तो बनता है।_________________________________________________________________
फोटो क्रेडिट- यूट्यूब
The post क्या हम भी पश्चिमी देशों जैसी निडर सोशल और पॉलिटिकल कॉमेडी कर पाएंगे? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.