सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलज़ार का जन्म भारत के पंजाब के दीना गांव (अब पाकिस्तान) में हुआ था। बंटवारे के बाद आपका परिवार अमृतसर (पंजाब, भारत) आ गया, फिर आप मुंबई चले गये। वर्ली में एक साधारण काम से जीवन की शुरुआत की। खाली समय में कवितायें लिखते थे। फिल्मों में उन्होंने बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम किया।
हिन्दी सिनेमा में फिल्मकार-गीतकार-संवाद लेखक और साहित्यकार गुलज़ार जैसा व्यक्तित्व रखने वाले बहुत ही कम हैं। सफेद झक कुर्ता और पायजामा, चेहरे पर मुस्कान और मृदुभाषी, हिन्दी और उर्दू का साफ उच्चारण। गुलज़ार से मिलो तो ऐसा लगता है कि मिलते रहो। बातों का सिलसिला कभी खत्म ना होने पाए, ऐसी इच्छा होती है। गुलज़ार भले ही शख्स के रूप में एक हों, लेकिन उनके हज़ारों चेहरे हैं और उन्होंने अपने हज़ारों चेहरों से लाखों प्रशंसकों को अपने से जोड़ा है। बॉलीवुड में एक महान स्थान बनाई है।
एक फिल्मकार के तौर पर ‘मेरे अपने’ के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक अलग-अलग विषयों पर लीक से हटकर फिल्में बनाई। ‘कोशिश’ फिल्म में गूंगे-बहरे माता-पिता की इच्छा है कि उनका बेटा उन जैसा नहीं हो। ‘आंधी’ फिल्म में इंदिरा गांधी के जीवन की एक झलक है। मौसम, किनारा, खुशबू, अंगूर, नमकीन, इजाजत, लेकिन, लिबास और माचिस जैसी फिल्मों में उन्होंने रचनात्मकता का इंद्रधनुषी रंग बिखेरा। आज भी फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैं।
गीतलेखन के क्षेत्र में अब तक नाम कर रहें हैं। फिल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ गीत श्रेणी मे गुलज़ार को आंधी (1975) के गीत ‘तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा’ के लिए पहली बार नामित किया गया। सन 76 मे आयोजित सामारोह मे ‘अमानुष’ के गीत ‘दिल ऐसा किसी ने तोड़ा’ को पुरस्कार मिला। इस वर्ष के बाद गुलज़ार साहब करीब हर साल ही ‘बेस्ट गीत’ के लिए नामित हुए।
‘जहां पे सवेरा हो’ (बसेरा), ‘दिल हुम-हुम करे’ (रुदाली), ‘चप्पा –चप्पा चरखा चले’ (माचिस), ‘आजा माहिया’ (फिज़ा) ‘बीड़ी जलाई ले’ (ओमकारा), ‘तेरे बिना’ (गुरु), ‘तू ही मेरी दोस्त है’ (युवराज) और ‘कमीने’ के दो गानों के लिए नामित हुए, मगर पुरस्कार नहीं मिल सका।
सन 76 मे रिलीज़ हुई फिल्म ‘मौसम’ के गीत ‘दिल ढूंढता है’ को भी फिल्मफेयर नहीं मिल सका, साहिर लुधियानवी के गीत ‘कभी-कभी मेरे दिल में’ को अवॉर्ड मिला। तीसरी बार ‘किनारा’ के गीत ‘नाम गुम जाएगा’ और ‘घरौंदा’ के गीत ‘दो दीवाने शहर में’ नामित हुए, इस बार वह फिल्मफेयर अवॉर्ड से नहीं चूके , दो दीवाने के लिए अवार्ड जीत लिया। सन 80 मे ‘गोलमाल’ के सदाबहार गीत ‘आनेवाला पल जानेवाला’ के लिए नामित हुए, गीत लेखन के लिए फ़िर अवार्ड जीता। यह सिलसिला 81 मे भी जारी रहा और ‘थोड़ी सी बेवफाई’ फ़िल्म के गीत ‘हज़ार राहें मुड़ के देखीं’ के लिए अवॉर्ड मिला।
इसी तरह ‘तुझसे नाराज़ नही’ 84, ‘मेरा कुछ सामान’ 89,‘ यारा सिली- सिली’ 92, चल छैंया –छैंया’ 99, ‘सथिया तेरी हंसी’ 03, ‘कजरारे ’06 और अभी –अभी सन 2011 मे विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘इश्कियां’ के गीत ‘दिल तो बच्चा’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। 2013 में दादा साहेब सम्मान के साथ ‘जब तक है जान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का अवॉर्ड जीता। विमल राय और ऋषिकेश मुखर्जी की छाया मे अपना फिल्मी सफर शुरु कर गीतकार के रूप में सचिन देव बर्मन के लिए ‘बंदिनी’ मे पहली बार गीत लिखे।
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