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भोजपुरी फिल्मों के ज़रिए राम मंदिर का मुद्दा उठाना क्या 2019 की तैयारी है?

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आजकल भोजपुरी फिल्मों और एलबमों में एक कंटेंट की समानता दिखाई दे रही है और वो कंटेंट है “राम मंदिर”। चाहे वो भोजपुरी में निकलने वाले एलबम हों, जिसमें गायक राम मंदिर को बनाने को लेकर गाने गाते हैं या भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री जहां आजकल “मंदिर वहीं बनाएंगे” जैसी फिल्में बनायी जा रही हैं।

इस समय यूपी और बिहार में फिल्मों और गानों के माध्यम से राम मंदिर का मुद्दा उठाना क्या किसी खास चीज़ की तरफ इशारा नहीं कर रहा है? जिस तरीके से ये एक फिल्म “मंदिर वहीं बनाएंगे” या फिर “कब बनेगा राम मंदिर” जैसे तमाम गाने एक सिलसिलेवार ढंग से भोजपुरी इंडस्ट्री के माध्यम से आ रहे हैं, ये खास मकसद की तरफ इशारा कर रहे हैं और वो मकसद 2019 का चुनाव हो सकता है

भाजपा जानती है कि यूपी और बिहार में जहां भोजपुरी बोली-समझी जाती है वहां लोकसभा की 120 सीटें हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हटा भी दिया जाए तो भी 70-80 लोकसभा सीटें हैं जो केंद्र की सत्ता का निर्धारण करती हैं। भाजपा ये भली-भांति जानती है कि पिछले लोकसभा चुनाव जिसमें उनके गठबंधन को यूपी में 80 में से 72 सीटों पर जीत मिली थी और बिहार में उन्होंने 40 में से 31 सीटें जीती थी, उतनी सीटें 2019 के लोकसभा चुनाव में लाना असंभव है। इसलिए भाजपा इस क्षेत्र में अपना राम मंदिर का पुराना कार्ड खेल रही है।

भाजपा ये भी जानती है कि वर्तमान एससी-एसटी एक्ट के कारण सवर्ण समाज भी गुस्से में है। अतः भाजपा के पास इन सवर्ण समाज के लोगों को साधने के लिए भी सिर्फ एक ही हथियार बचता है और वो हथियार है राम मंदिर का हथियार और भाजपा ये हथियार बड़ी चालाकी से, बड़ी सावधानी से इस्तेमाल कर रही है। एक तरफ भाजपा एससी-एसटी एक्ट के ज़रिए दलित, पिछड़े वर्ग के वोटों में सेंध लगाने की सोच रही है तो दूसरी तरफ राम मंदिर निर्माण मुद्दे के माध्यम से वह अपने सवर्ण वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है।

केंद्र में बैठी मोदी सरकार के पास पांच साल की उपलब्धियों को बताने के लिए कुछ विशेष है ही नहीं। मोदी सरकार हर मोर्चे पर फेल रही है।चाहे वो भुखमरी का मुद्दा हो, चाहे बेरोज़गारी का, चाहे स्वास्थ्य का मुद्दा हो चाहे शिक्षा का। चाहे किसानों का मुद्दा हो, चाहें महिलाओं का, चाहे दलितों का मुद्दा हो या फिर वंचितों, शोषितों का मोदी सरकार हर मोर्चे पर उस उम्मीद पर तो खरी नहीं पाई है जो मोदी जी ने देश की जनता को दी थी।

नोटबंदी ने सैकड़ों लोगों की जान ली और बाद में पता चला कि 99.3 प्रतिशत पैसे बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं। फिर जीएसटी से छोटे दुकानदारों, छोटे लघु एवं कुटीर उद्योगों को भारी नुकसान हुआ इन सब सवालों का जवाब भी मोदी को 2019 के चुनाव में जनता को देना होगा।

क्या इन सवालों से बचने के लिए भाजपा द्वारा एक सोची समझी साज़िश के तहत भोजपुरी फिल्मों और एलबमों का सहारा लेकर समाज में नफरत के बीज बोए जा रहे हैं, जिसकी फसल 2019 के चुनाव से पहले एक दंगे के रूप में उभरेगी, जिसे मोदी चुनाव के समय काटेंगे।

फसल बोने का भी अपना एक ढंग होता है। जब फसल में खाद-पानी सही मात्रा में पड़ता है तो फसल बढ़िया होती है उसी प्रकार इस नफरत रूपी बीज को भाजपा जितना बढ़िया से खाद पानी देगी, नफरत की फसल उतनी बढ़िया होगी।

भाजपा इन उन्मादी गानों से समाजिक सौहार्द बिगाड़ना चाहती है, कहीं इसीलिए तो नहीं भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का सहारा लिया जा रहा है?भोजपुरी इंडस्ट्री ही क्यों चुना गया तो इस सवाल का सबसे बढ़िया जवाब है भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री अभी एक छोटी फिल्म इंडस्ट्री है और ये बड़ी तेज़ी से बढ़ भी रही है।

एक बात और मनोज तिवारी जो कि इस वक्त दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष हैं वो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से काफी करीब से जुड़े हैं और इस वक्त मौजूद सारे कलाकारों के सीनियर हैं और उन्हें भोजपुरी के दूसरे दौर का जन्मदाता भी कहा जाता है। हो सकता है कि इसका भी बड़ा भारी असर हो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री पर।

इसके साथ ही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के अब तक के सबसे सफल गायकों में शुमार पवन सिंह हों या भोजपुरी के महानायक कहे जाने वाले रवि किशन, ये तमाम कलाकार भाजपा के सदस्य हैं। ऐसे में पूरी फिल्म इंडस्ट्री में देखा जाए तो एक तरह से भाजपा का वर्चस्व है।

भोजपुरी गानों ने आज भी अपनी पकड़ यूपी, बिहार के लगभग हर घरों में बनाई हुई है और आज भी ऐसे गाने आते हैं जो समाज में हो रही वर्तमान घटनाओं, कुरीतियों को समाज के सामने रखते हैं। आज भी भोजपुरी में व्यास हैं जो ज़मीनी स्तर पर निर्गुण, चईता, फगुआ, पूर्वी गाते हैं और समाज का मनोरंजन करते हैं लेकिन वर्तमान समय में कुछ छोटे गायक जो विवादास्पद गाने गाकर हिट होना चाहते हैं वो लोग समाज में अश्लीलता और इस तरह के विवादित मुद्दों पर गाना गाकर समाज में विवाद को जन्म देते हैं जो समाजिक सौहार्द को बिगाड़ता है।

ऐसी परिस्थिति में लोगों को ऐसे कंटेंट से दूरी बनाकर अपने विवेक के अनुसार काम करना चाहिए और समाज में सामाजिक सौहार्द बनाए रखना चाहिए। इस तरह के विवादास्पद गाने या फिल्में जो इस समय भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत तेज़ी से उठ रही हैं, फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी नुकसानदायक हो सकती हैं। ऐसी फिल्मों और गानों से समाज का एक तबका जिसको निशाने पर लेकर ये फिल्में बनाई जा रही हैं वो इस फिल्म इंडस्ट्री से कट जाएगा। इसका भारी नुकसान फिल्म इंडस्ट्री को उठाना पड़ेगा और इस वक्त जिस तेज़ी से ये इंडस्ट्री विकास कर रही है तब इस तरह के विवादास्पद गाने या फिल्में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए आत्मघाती भी साबित हो सकती हैं।

अतः भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को ऐसे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले गानों या फिल्मों से दूरी बनानी चाहिए। भोजपुरी के कलाकारों, निर्माताओं, निर्देशकों के ऊपर ही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को बचाने की ज़िम्मेदारी है। अब इन लोगों को ये तय करना है कि ये कैसे अपनी भोजपुरी को आगे ले जाएंगे।

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