हिंदी सिनेमा में बायोपिक का चलन इन दिनों ज़ोर पर है। आज का ज़माना बायोपिक का ज़माना है। हर मिज़ाज की बायोपिक बन रही है। दर्शकों की च्वाइस का बेहतरीन दौर चल रहा है। अभिजीत पानसे की ‘ठाकरे’ इसी सिलसिले की नवीनतम कड़ी है।
अभी कुछ दिन पहले ही मनमोहन सिंह पर आधारित ‘द ऐक्सिडेंटल प्राइमिनिस्टर’ रिलीज़ हुई थी, कंगना रनौत की ‘मणिकर्णिका’ रिलीज़ हुई है। इन सबके साथ ही नवाजु़द्दीन सिद्दीकी अभिनीत ‘ठाकरे’ साथ-साथ सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई। शिवसेना के नेता संजय राउत ने फिल्म बनाई है। पार्टी के सेवक द्वारा पार्टी के मुखिया पर फिल्म से उम्मीद कम की जाती है, यह श्रेष्ठ बायोपिक बनने की राह में रोड़ा बन जाती है। किंतु बाल ठाकरे की शख्सियत हमें फिल्म की ओर फिर भी ले जाती है।

नवाजु़द्दीन सिद्दीकी की अदाकारी फिल्म को खास बनाती है
फिल्म बाला साहेब ठाकरे को एक हीरो या मराठियों के मसीहा के तौर पर पेश करती है और फिल्म खास बन पड़ी है। नवाजु़द्दीन सिद्दीकी की अदाकारी उसे खास बनाती है। पूरे फिल्म को अपने कंधे पर ले जाने में वह सफल रहे हैं। सीन दर सीन में उनका अभिनय प्रभावित करता है, वह कहीं कमज़ोर नहीं पड़े हैं। बाला साहेब जैसा दिखने, चलने बोलने एवं एटीट्यूड लाने में नवाज़ ने ज़बरदस्त मेहनत की है, वह दिखता भी है। फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण नवाजु़द्दीन हैं। पत्नी मीना ठाकरे के किरदार में अमृता राव ने मिली भूमिका को श्रेष्ठ अंदाज़ में निभाया है।
बाला साहब ठाकरे एक श्रेष्ठ संगठनकर्ता और बेबाक वक्ता थे, जो बात कह दी उससे पीछे नहीं हटने वाले। महाराष्ट्र में भाजपा, शिवसेना सरकार का रिमोट कंट्रोल हमेशा बाला साहब के पास ही रहता था। महाराष्ट्र की सत्ता खोने के बाद भी मुंबई पर उनका राज चलता था। वक्त के साथ बाला साहेब ने स्वयं को सीमाओं में बांध लिया था। केवल मराठी मानुष के हित की ही बात करते थे। इस समुदाय हित के लिए समानांतर समुदायों के हितों को नज़रअंदाज करना उनमें देखा गया।
पाकिस्तान पर बाल ठाकरे का स्टैंड
मुंबई पर मराठियों का एकाधिकार बनाना उनके मन में था। बाला साहेब के स्टैंड को न्यायपरक दिखाने की पहल फिल्म लेती है। पाकिस्तान के बारे में बाला साहेब कहते थे कि हम ज़्यादा बेहतर संबंधों की उम्मीद नहीं रख सकते। उस देश की सरकारी एजेंसी आईएसआई सीधे तौर पर आतंकियों की मदद कर रही। संसद पर हमला और मुंबई पर आतंकी हमले के बाद उस देश से हम सामान्य दोस्ताना संबंध नहीं रख सकते। बाल ठाकरे ने स्वयं के लिए एक परिधि सी तय कर दी थी। संजय राउत की फिल्म हर विवादास्पद मुद्दे पर बाला साहेब की बेबाकी व साफगोई दिखाती है। फिल्म ठाकरे एक क्रोनोलॉजी की तरह सामने आती है।
बाला साहेब ठाकरे एवं शिवसेना की राजनीतिक विचारधारा का एक सजीव डॉक्यूमेंट है यह फिल्म
फर्स्ट हाफ ब्लैक एंड व्हाइट है, इंटरवल के बाद रंगीन। फिल्म में कुछ रोचक कविताओं का पार्श्व में प्रयोग हुआ है। रामधारी दिनकर की कविता, “खाली करो सिंहासन कि जनता आती है”, को जगह मिली है। सोहनलाल द्विवेदी की महात्मा गांधी पर लिखी एक कविता भी है।
एक साधारण किशोर का बाला साहेब ठाकरे बनने का सफर रुचि जागृत करता है। किस तरह आपने समाचार पत्र में काम शुरू किया। मराठियों के हक के लिए आवाज़ बुलंद की। कैसे आपने एक मज़बूत संगठन की परिकल्पना की। सामान्य पार्टी कार्यकर्ता से किंग मेकर बनने की विलक्षण क्षमता उनमें थी। आज के राजनीतिक परिपेक्ष से फिल्म स्वयं को आसानी से जोड़ लेती है। बाला साहेब ठाकरे एवं शिवसेना की राजनीतिक विचारधारा का एक सजीव डॉक्यूमेंट है यह फिल्म। फिल्म अपने निर्माण उद्देश्य में सफल है।
The post “बाल ठाकरे की राजनीतिक विचारधारा का एक सजीव डॉक्यूमेंट है फिल्म ठाकरे” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.