व्यापार एक बहुत ही बेहतरीन चीज़ है। आज हर व्यक्ति कहीं ना कहीं से कोई व्यापार ही कर रहा है। कुछ वक्त पहले देश के प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने यह बात बहुत ही जोश के साथ कही थी कि उनके खून में व्यापार है, जिसपर भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं आई थीं। अब जब देश का प्रधानसेवक ऐसी बात कह रहा हो तो इस बात को बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि व्यापार का कितना ज़्यादा महत्व है। व्यापार या कारोबार हमेशा से हर समाज की बहुत बड़ी ज़रूरत रही है क्योंकि इसके बिना समाज चल ही नहीं सकता।
समाज में बहुत से व्यापार मौजूद हैं। हर व्यक्ति अपने मन का व्यापार कर रहा है, कोई व्यापार से करोड़ों का मालिक बना तो कोई अरबों का और ना जाने कितने तबाह भी हो गए। फिर भी जिसके भीतर कारोबार की चाहत है वह व्यक्ति व्यवसाय ही कर रहा है। ऐसे ही प्रमुख कारोबारों में से एक कारोबार “नफरत का कारोबार” भी है। इस व्यापार की ‘मीडिया’ और ‘सोशल मीडिया’ नाम की दो प्रमुख मंडियां हैं, जहां से नफरत का सामान बाज़ार में पहुंचता है।
नफरत के कारोबार का प्रमुख उद्देश्य समाज में मोहब्बत को खत्म करना और समाज के दो सबसे खास तबको को विभाजित करना है ताकि बहुत आसानी से वोटों का ध्रुवीकरण हो सके। यह कारोबार सबसे ज़्यादा सोशल मीडिया पर दिखता है, जहां प्रत्येक व्यक्ति अपने दिल की भड़ास निकालता है।
सोशल मीडिया एक ऐसा पार्क बन गया है कि जहां पर व्यक्ति जो चाहे लिख सकता है, उसे कोई रोकने या टोकने वाला नहीं होता। शायद इसी बात का भरपूर फायदा यह कारोबारी उठाते हैं, जिनके ऐसे-ऐसे पेज चल रहे हैं, जिसपर वे नफरत भरी बातें लिखते और दिखाते हैं, जिससे उसके सामने वाला तबका मचल जाता है और फिर वह काउंटर करता है।
इस तरह के फेसबुक के पेज हैं, “भक्तो के पापा, कट्टर हिन्दू, आई.एम विथ बरखा दत्त, आई. एम विथ रवीश कुमार, हल्ला बोल, आज़ाद भारत, कश्मीरी पंडित्स-हिन्दूज़, आरक्षण हटाओ देश बचाओ, आई.एम विथ शहला रशीद, आई एम विथ रोहित सरदाना, आई एम विथ सुधीर चौधरी, आई एम विथ अंजना ओम कश्यप”आदि अन्य तमाम नामों से यह पेज चल रहे हैं, जो एक दूसरे को मिर्च लगाने वाले पोस्ट अपडेट करते हैं।
इन सबमें इन दोनों विरोधियों की जंग तो होती ही है साथ में वह लोग भी इसमें कूद जाते हैं, जो इन दोनों में से एक को अपने पक्ष का समझने लगते हैं और जाने-अनजाने में वह लोग भी नफरत फैलाने का कारण बनते हैं, जिनके ज़हनों से प्यार को खत्म करने के लिए यह व्यवसाय हो रहा है ताकि वक्त आने पर राहुल, राहुल के साथ चला जाए और रहमान, रहमान के साथ जाए। यह दोनों एक दूसरे की नफरत में अंधे हो जाएं ताकि कारोबारी इसी फैलाई हुई नफरत के ज़रिए सत्ता का सुख भोगते रहें।
इसके साथ इन व्यापारियों के ऐसे गुट भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं, जिनका काम सिर्फ और सिर्फ टारगेट यूज़र की पोस्ट पढ़ते ही उस यूज़र को अपशब्दों से नवाज़ना होता है। यह टारगेट यूज़र “ओम थानवी, असगर वजाहत, रवीश कुमार, बरखा दत्त और इन जैसे अन्य लोग होते हैं, जिसका सीधा सा उदाहरण कई बुद्धीजीवियों की हत्या और हाल ही में महात्मा गांधी के पुतले को गोली मारने की घटना है।
इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि नफरत कहां तक पहुंच गयी है, जो लोग छिपकर गांधी जी पर अपनी भड़ास निकालने के साथ गोडसे की जय-जयकार किया करते थे, वहीं लोग आज खुलेआम और बिना किसी डर के गांधी जी के पुतले को गोली मारकर अपनी शक्ति से समाज को परिचित करवा रहे हैं।
इस कारोबार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि आए दिन इन जड़ों से तीन तलाक, गौरक्षा, घर वापसी, मीटबंदी, शहरों के नाम बदलना आदि विषय निकलते रहते हैं, जिससे इस कारोबार में मुनाफा होता रहे। इस कारोबार की यह ज़बरदस्त बात ही है कि आज लोग अपने दुख से इतना दुखी नहीं होते जितना कि दूसरों की खुशी से।
इस कारोबार की चपेट में आए लोग दूसरे के दुख से बहुत ज़्यादा खुश होते हैं, तभी कोई मंहगाई, बढ़ती बेरोज़गारी, शिक्षण संस्थानों के हालत, ट्रेनों का पटरी से उतरना, तेज़ी के साथ पेट्रोल के दाम बढ़ना, बच्चों का सड़कों पर भीख मांगना, किसानों की हालत और व्यापार में मंदी, शिक्षा का स्तर आदि के बारे में नहीं पूछता और ना ही पूछना चाहता है क्योंकि इससे ज़्यादा खुशी तीन तलाक बिल, मीटबन्दी, शहरों के नाम बदलने से और लिंचिंग से मिल जाती है। इस तरह इस कारोबार में दिन दूनी रात चौगनी की रफ्तार से तरक्की हो रही है।
The post “नफरत के व्यापार की दो मंडियां हैं मीडिया और सोशल मीडिया” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.