अभी तक ‘मिशन मंगल’ देखी नहीं है और देखने की इच्छा भी नहीं है। उस फंतासी में जीना नहीं चाहता, जिसको फिल्म ने दर्शकों के बीच बुनने की कोशिश की है और दर्शक लहालोट होकर अभीभूत हुए जा रहे हैं। आपका सवाल होगा कौन सी फंतासी? मुझे एक बात से चिढ़ होती है कि किसी भी काम में औरतों को नायक के तौर पर दिखाने में, औरतों के कैरेक्टर के पूरे संघर्ष को दिखाने में, फिल्मों को परहेज़ क्यों है? महिला...
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