डिबेट्स , वाद-विवाद। प्रसांगिक तभी लगते हैं जब उनका निचोड़ सकरात्मक हो या फिर वह वाद-विवाद अपने लक्ष्य तक पहुंच रहा हो। किसी विकास के लिए वाद-विवाद चलता है। लोगों के विचारों के समकक्ष अपने विचारों को प्रसांगिक बनाना आसान काम नहीं होता लेकिन कोशिश यही होती है कि उस दौरान कोई फिजिकल एब्यूज और गाली-गलौज ना हो। मगर आज के दौर पर वाद-विवाद का स्तर इतना नीचे चला गया है कि लोग अपनी जान से हाथ धो बैठ रहे...
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