मेरी नज़र कमज़ोर होने लगी थी। चश्मा था, लेकिन लैंस पर धूल जमी थी। बरसों पुरानी धूल साफ किए साफ नहीं होती है और सब कुछ धुंधला सा दिखाई देता था, जो हो रहा था अच्छा ही चल रहा था। कभी सोचा नहीं मेरे सामने रोड़ पर रहने वाले लोगों की इस स्थिति का कारण सामाजिक भी हो सकता है। मैंने कभी गौर नहीं किया कि जिस समाज, संस्कृति, समुदाय का हम बिगुल बजाते फिरते हैं उसका असल मतलब क्या है? यूं तो पिछली क्लासेस क...
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