बॉलीवुड में फिल्मों की कहानियों से ज़्यादा उनके क्लाइमेक्स को ख़ास बनाने पर जोर दिया जाता है। पटकथा कैसी भी हो अगर फिल्म का क्लाइमेक्स दर्शकों को चौंकाने में सफल रहा तो उसकी सफलता की गारंटी निश्चित मानी जाती है। फिल्म इंडस्ट्री में शुरुवात से ही फिल्म का अंत सुखद रखने की परम्परा रही है, लेकिन बॉलीवुड के इस सौ साल के सफ़र में हर दौर में कुछ ऐसी फ़िल्में भी बनी हैं जिन्होंने अपने क्लाइमेक्स सीन में इस परम्परा को तोड़ा और अपनी एक अलग पहचान बनाई। आज हम आपको बॉलीवुड के ऐसी 10 फिल्मों से रूबरू करा रहे हैं जिनके क्लाइमेक्स सीन ने उन्हें अमर बना दिया।
ज्वेल थीफ : विजय आनंद द्वारा साल 1967 में बनाई गयी ये फिल्म थ्रिलर फिल्मों की लिस्ट में माइलस्टोन है। देव आनंद, वैजयंतीमाला और अशोक कुमार के अभिनय से सजी इस फिल्म की कहानी इस तरह आपको उलझाये रखती है कि आखिरी सीन तक आप फिल्म में हीरो या विलेन की पहचान नहीं कर सकते हैं। साठ के दशक में बनी इस सस्पेंस थ्रिलर को आज भी देखना उतना ही रोमांचित करता है।
आनंद : बॉलीवुड के क्लाइमेक्स सीन की बात हो तो सबसे पहले इसी फिल्म का नाम ज़ेहन में आता है। ऋषिकेश मुख़र्जी का निर्देशन राजेश खन्ना,अमिताभ बच्चन का अभिनय और गुलज़ार के डायलाग इस फिल्म को अलग ही मुकाम पर ले जाते हैं। पूरी फिल्म ज़िन्दगी जीने के फ़लसफ़े को जिस अंदाज़ में पेश करती है वैसा दार्शनिक अंदाज़ बॉलीवुड में कम ही देखने को मिलता है। फिल्म का क्लाइमेक्स सीन अपने संवाद और फिल्मांकन की वजह से आपको झकझोर कर रख देता है। यह फिल्म आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस दौर में थी।
जाने भी दो यारों : साल 1983 कुंदन शाह के निर्देशन में बनी यह फिल्म अपने बेहतरीन ह्यूमर के लिए जानी जाती है। बात अगर कॉमेडी फिल्मों कि की जाए तो यह अब तक की सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी फिल्मों में से एक है। हास्य की टाइमिंग और किरदारों के बोलने का अंदाज़ खासतौर पर पंकज कपूर और नसीरुद्दीन शाह का अभिनय इस फिल्म को कॉमेडी के कल्ट मूवी होने का दर्जा दिलाते हैं। फिल्म के क्लाइमेक्स में फिल्माया गया महाभारत सीन इतना जबरदस्त है कि हंसते-हंसते आपके पेट में दर्द हो सकता है।
सदमा: बालू महेंद्र के निर्देशन में साल 1983 में बनी यह फिल्म अपने क्लाइमेक्स सीन को लेकर हमेशा चर्चा में रही है। याददाश्त खो चुकी एक लड़की और एक टीचर के प्रेम संबंधो पर बनी यह एक खूबसूरत फिल्म है। फिल्म अपने बोल्ड सीन की वजह से भी चर्चा में रही लेकिन जिस सीन की सबसे ज़्यादा चर्चा हुई, वह क्लाइमेक्स सीन है जिसमें याददाश्त खो चुकी लड़की पूरी तरह ठीक होने पर अपने प्रेमी और इलाज में मदद करने वाले हीरो को ही पहचानने से इंकार कर देती हैं। कमल हसन और श्रीदेवी के अभिनय ने इस क्लाइमेक्स सीन को इतना इंटेंस बना दिया है कि आज भी इसे देखकर लोग रोने लगते हैं।
रंग दे बसंती : युवाओं और उनकी देशभक्ति को लेकर बनी राकेश ओमप्रकाश मेहरा की यह क्लासिक फिल्म देशभक्ति पर बनी अब तक की सबसे अच्छी फिल्मों में से एक कही जा सकती है। देश की आजादी की लड़ाई और आज के सिस्टम के खिलाफ की लड़ाई को जिस अंदाज़ में एक दूसरे में पिरोया गया है वह लाजवाब है। कॉलेज जाने वाले और अय्याशी करने वाले लड़के कैसे देश के लिए मर मिटने को तैयार हो जाते हैं उस यात्रा की कहानी है ‘रंग दे बसंती’। फिल्म अपने क्लाइमेक्स में बिना कोई लेक्चर दिए इतने पावरफुल तरीके से अपनी बात कहती है कि आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं।
ए वेडनसडे : नीरज पांडे के निर्देशन और नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर और जिम्मी शेरगिल जैसे मंझे हुए किरदारों से सजी यह फिल्म आतंकवाद और आम आदमी की लड़ाई को जिस बखूबी से पेश करती है वह देखने लायक है। नीरज पांडे ने अपनी पहली ही फिल्म में यह दिखा दिया कि कहानी को कहने का अंदाज़ बाकियों से कितना अलग है। फिल्म के क्लाइमेक्स सीन में आतंकवाद को लेकर एक आम आदमी के गुस्से और डर को नसीर साहब ने अपनी एक्टिंग से यादगार बना दिया है।
उड़ान : पिता और पुत्र के आपसी रिश्ते और उनके ईगो की लड़ाई को लेकर बनी यह फिल्म एक यात्रा की तरह लगती है। विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में बनी इस फिल्म के क्राफ्ट को समझने के लिए आपको दो तीन-बार इस फिल्म को देखना होगा। पिता पुत्र के रिश्ते को कई परतों में उधेड़ती यह फिल्म कई जगह आपको परेशान करती है। फिल्म में कई जगह पिता से हारने वाला बेटा जब आखिरी सीन में पिता को पछाड़ते हुए दौड़ते समय पीछे मुड़कर देखता है तो उस छटपटाहट को आप सिर्फ फिल्म देखकर ही समझ सकते हैं।
कहानी: सुजॉय घोष की साल 2012 में आयी फिल्म ‘कहानी’ अपनी कहानी की वजह से काफी चर्चा में रही। फिल्म की पटकथा इतनी कसी हुई है कि आप कई जगह पिछले सीन को अगले सीन से जोड़ ही नहीं पाते हैं। फिल्म धीरे धीरे अपने राज खोलती है और क्लाइमेक्स में जाकर आपको चौंका कर रख देती है। फिल्म का थ्रिलर और इसका क्लाइमेक्स इसे दूसरी फिल्मों से काफी अलग करता है। विद्या बालन की उम्दा एक्टिंग से सजी इस फिल्म में कोलकाता शहर भी एक एक किरदार की तरह नज़र आता है।
(विडियो: फिल्म ट्रेलर)
अग्ली: अपने टाइटल के अनुसार यह फिल्म डार्क फिल्मों की श्रेणी में सबसे ऊँचे पायदान पर है। अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी इस फिल्म में यह दिखाया गया है कि हर इंसान के अन्दर कुछ न कुछ बुराई होती है जो मौका मिलते ही उसे विलेन बना देती है। फिल्म की सबसे बड़ी खासियत कि इसमें कोई भी किरदार हीरो नहीं है बल्कि सब के सब विलेन हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स सीन हद दर्जे का भयावह और क्रूर है कि फिल्म देखने के कई दिनों बाद भी वो सीन आपके दिमाग से हटता नहीं है।
(विडियो: फिल्म ट्रेलर)
हैदर: हाल में रिलीज हुई फिल्मों की बात की जाए तो हैदर फिल्म के क्लाइमेक्स सीन ने सबको चौंका कर रख दिया। विशाल भारद्वाज के निर्देशन में बनी यह कल्ट फिल्म शेक्सपियर के बहुचर्चित उपन्यास हेमलेट पर आधारित है। फिल्म की ख़ासियत इसका उलझाने वाला क्लाइमेक्स सीन है जिसे देखने के बाद आप उलझन में पड़ जाते हैं कि आखिर फिल्म में विलेन था कौन? ‘To be or not to be’ की फिलोसफी को जिस अंदाज़ में कश्मीर से जोड़ा गया है उसे आप फिल्म देखकर ही समझ सकते हैं।
(विडियो: फिल्म ट्रेलर)
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