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“बिना सवाल बागों में बहार है”

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गौरव गुप्ता:

Ndtv इंडिया पर बैन लगा है। फेसबुक खचाखच स्टैंड विद ndtv के साथ ट्रेंड करने लगा है। ये वो लोग हैं जो सवाल को अहमियत देते हैं और सरकार जिनसे डरती है। क्यूंकि ये ज़िन्दा लोग हैं। रवीश ने जबाब में प्राइम टाइम में अनोखा प्रयोग किया है, जो वो पहले भी करते रहे हैं। सवाल करने के नए ढंग पर बखूबी उन्होंने अपनी बात लोगों तक पहुंचाई। “सवाल का सवाल है” नाम से 4 नवम्बर के प्राइमटाइम में उन्होंने सवाल किया कि सवाल कैसे करें और सवाल करें तो जबाब अथॉरिटी देगा या ट्रोल। आर्ट ऑफ एक्सप्रेशन के माध्यम से मौजूदा हालात पर चुटकी लेते हुये रवीश ने पत्रकारिता की नई परिभाषा गढ़ी।

रामनाथ गोयंका पुरस्कार “जॉर्नलिस्ट ऑफ़ द ईयर” से सम्मानित रवीश, डिबेट को हो हुल्लड़ न बनाकर एक महत्वपूर्ण जानकारी देने का प्रयास करते हैं ताकि दर्शकों को कुछ सकारात्मक जानकारी मिल सके। रवीश सवाल को अहमियत देते हैं और एक पत्रकार का उसूल भी यही कहता है।

“दृग कालिमा में डूबकर, तैयार होकर सर्वथा
हां लेखनी हृतपत्र पर, लिखनी तुझे है वह कथा
जग जाये तेरी नोख से, सोये हुए वो भाव जो” –    (मैथिलि शरण गुप्त)

लोकतंत्र में सवाल क्यों महत्वपूर्ण है? जो सवाल नही करते वो जीते जी मरे हुये होते हैं और जो सवाल करते हैं, मरकर भी उनका सवाल ज़िन्दा रहता है। थोड़ी देर सोचिये क्या पता अगले दो सेकंड में आप सोचना भी बंद कर दें। इसलिये जल्दी ही सोचिये कि अगर “आपके दिमाग में सवाल आना बंद हो जाएं” तो क्या होगा? मैंने सोच कर देखा है- जी बिलकुल मैं डर गया था। मेरे हाथ पैर कांपने लगे थे। क्या, क्यों, कब, कैसे ये प्रश्नवाचक शब्द मुझसे दूर जा रहे थे। ऐसा लगा समय यहीं रुक जाएगा।

निश्चित रूप से जिस दिन आपके दिमाग में सवाल नही आएंगे, आप एक मशीन हो जायेंगे या जीते जी निष्प्राण हो जायेंगे। आपकी आत्मा ज़िन्दा है ये सवाल इस बात का सबूत हैं। जब तक आप सवाल कर रहे हैं, सवाल आपको ज़िन्दा रखे हुए हैं, सवाल आपमें गति बनाए हुए हैं। हम विकास तभी कर रहे हैं जब हम सवाल कर रहे हैं। अगर न्यूटन ने सेब को गिरता हुआ देख यह न पूछा होता कि- सेब “कैसे” गिरा तो आज गुरुत्वाकर्षण का नियम हम नही जान पाते। खोज हमारे अंदर उपजे सवाल का ही फल है।

आप सवाल करें सरकार से, समाज से, परिवार से। अगर आप चुप हैं तो सवाल करें खुद से कि आप सवाल क्यों नही कर रहे हैं। सोच ज़िन्दा है तो सवाल ज़िन्दा है और सवाल ज़िन्दा हैं तो आप ज़िन्दा हैं। वरना सन्नाटा तो मरघटों पर पसरा ही है। मौजूदा परिस्तिथी आपके सवाल को खत्म कर रही है, मतलब आपको खत्म कर रही है। भीड़ सवाल नही करती, दंगा करती है। हमेशा सवाल, आखिर में  भीड़ से अलग खड़ा एक शख्श करता है। तय करें कि आप गूंगी भीड़ में शामिल होना चाहते हैं या आप एक अकेला सवाली बनना चाहते हैं। जो सवाल करता है, सरकार उस पर बवाल करती है।

वो जनता जिन्हें सरकार से सवाल करना पसंद नही है (अंध भक्त) वो रवीश का प्राइम टाइम कैसे देखें, ताकि वो कुछ अपने लिए सकारात्मक जानकारी निकाल सकें।

1- भूल जाएं कि स्टूडियो में बैठा शख्स रवीश कुमार है। यह भी भूल जाये की वह ndtv इण्डिया देख रहे हैं। (कोशिश कीजिये थोड़ा मुश्किल है कुछ पूर्वाग्रहों से निकलना)

2- भूल जाइये कि जो आलोचना हो रही है वह बीजेपी सरकार की है। सोचिये यह किसी और देश की, किसी और सरकार की बात कर रहे हैं। (वरना यहां तो बागों में बहार है)

मैं इसलिए यह सुझाव दे रहा हूं क्यूंकि मौजूदा समय में जहां सोच और सवाल दोनों को खत्म किया जा रहा है, आपको एक नागरिक होने के नाते अपनी कुंद मानसिकता को खोलने की ज़रूरत है। आज अगर आपका पड़ोसी सवाल करने पर बुरा हश्र झेल रहा है तो कल यही हाल आपका भी हो सकता है। सरकारे बदलेंगी पर कारनामे वही रहेंगे, फिर जब आप उनकी चपेट में आएंगे तब उस पत्रकार को याद मत करियेगा जिसने “सवाल करना सिखाया।” बाकि जो है, सो हइये है।

 

The post “बिना सवाल बागों में बहार है” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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