भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहेब फाल्के का आज 147वां जन्मदिन है। आज ही के दिन सन 1870 को नासिक के पास त्रियम्बकेश्वर में इनका जन्म हुआ और नाम रखा गया धुंडीराज गोविन्द फाल्के। फाल्के ने जब फ्रेंच फिल्म ‘द लाइफ ऑफ़ क्राइस्ट’ पहली बार देखी तो उनके मन में यह ख़याल आया कि परदे पर भारत के देवी-देवता कैसे दिखेंगे। उनके इसी विचार ने 9 मई 1913 को भारतीय सिनेमा को उसकी पहली स्वदेशी फिल्म ‘महाराजा हरिश्चंद्र’ के रूप में दी जिसकी अवधी लगभग एक घंटे की थी।
आइये जानते हैं उनके धुंडीराज गोविन्द फाल्के से दादासाहेब फाल्के बनने के सफ़र के कुछ अहम् पड़ावों के बारे में –
1)- सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट मुंबई में हुई पढ़ाई:
सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट मुंबई, फोटो आभार – Sujeet Shyam Mahadikसर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट मुंबई से पढाई करने के बाद महाराजा सैयाजीराव यूनिवर्सिटी बड़ोदा से दादासाहेब फाल्के ने फोटोग्राफी, इंजीनियरिंग, शिल्पकला और चित्रकला की पढ़ाई की और गोधरा में एक फोटोग्राफर के रूप में अपना कैरिअर शुरू किया।
2)- आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के साथ किया काम:
फोटोग्राफर के रूप में कैरिअर शुरू करने वाले फाल्के को यह व्यवसाय छोड़ना पड़ा जब प्लेग की बीमारी फैलने के बाद उनकी पहली पत्नी और बच्चे की मौत हो गयी। इसके बाद उन्होंने अर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया में एक ड्राफ्ट्समैन के तौर पर काम करने लगे। लेकिन भारत में अर्कियोलॉजी की सीमितताओं के कारण कुछ समय बाद उन्होंने ये नौकरी भी छोड़ दी।
3)- रजा रवि वर्मा के साथ किया पेंटर का काम:
प्रसिद्ध पेंटर राजा रवि वर्मा जिन्होंने भारत के देवी-देवताओं को उनकी पेंटिंग्स द्वारा घर-घर में पहुंचाया, दादासाहेब फाल्के ने उनके साथ एक पेंटर के रूप में काम किया और बाद में अपनी खुद की एक प्रिंटिंग प्रेस भी खोली।
4)- भारत की पहली फिल्म महाराजा हरिश्चंद्र:
सहयोगियों के साथ विवाद हो जाने के कारण उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाय को भी छोड़ दिया। अब उन्होंने खुद की फिल्म बनाने का निश्चय किया, फिल्म बनाने की प्रेरणा उन्हें फ्रेंच फिल्म ‘द लाइफ ऑफ़ क्राइस्ट’ से मिली। इस फिल्म को बनाने में उनके पूरे परिवार ने उनकी मदद की, उन्होंने खुद इस फिल्म का लेखन और निर्देशन किया। उनकी पत्नी ने फिल्म के पोस्टर बनाने, फिल्म के प्रचार की ज़िम्मेदारी उठाई और साथ में फिल्म की पूरी टीम की हर ज़रूरत का ख़याल रखा। वहीं उनके बेटे ने फिल्म में मुख्य किरदार महाराज हरिश्चंद्र के बेटे की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1912 में बनकर तैयार हुई यह फिल्म 3 मई 1913 को मुंबई (तब बम्बई) के कोरोनेशन सिनेमा में रिलीज़ हुई।
5)- दादासाहेब फाल्के पुरस्कार और डाक टिकट:
दादासाहेब ने उनके 19 साल के फ़िल्मी जीवन में 95 फ़िल्में और 25 शॉर्ट फ़िल्में बनाई। उन्होंने हिन्दुस्तान फिल्म्स नाम से बम्बई के कुछ व्यवसाइयों के साथ मिलकर एक फिल्म कंपनी भी बनाई। लेकिन कला पर पैसे को प्राथमिकता देने वाले सहयोगियों के साथ एक बार फिर उनका मतभेद हुआ और उन्होंने फिल्म कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिया। दादासाहेब की रचनात्मक सोच की कमी के चलते उनके बिना यह कंपनी संभल नहीं पाई और उन्हें फिर से कंपनी में आने को आनी को कहा गया। इसके बाद बोलती फिल्मों का दौर आया और दादा साहेब अपने फिल्ल्मी सफ़र को रोक कर नासिक चले गए जहां 16 फरवरी 1944 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा।
भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहेब फाल्के के सम्मान में भारत सरकार, सिनेमा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए फ़िल्म जगत की हस्तियों को दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित करती है। भारतीय सिनेमा के क्षेत्र का यह सबसे बड़ा सम्मान 1969 में भारत में सिनेमा की फर्स्ट लेडी कही जाने वाली देविका रानी को मिला था। दादासाहेब की याद में भारत सरकार ने 1977 में एक डाक टिकट भी ज़ारी किया था।
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