जुनैद,
मुझे नहीं पता मैं तुम्हें यह पत्र क्यों लिख रहा हूँ क्योंकि तुम इसे कभी पढ़ नहीं पाओगे। मुझे नहीं पता तुम कौन थे और न ही मैंने तुम्हारे बारे में और जानने की कोशिश की। मैंने बस तुम्हारे बारे में पढ़ा। मैंने पढ़ा कि तुम दिल्ली से अपने घर लौट रहे थे और, और…कुछ लोगों ने तुम्हें मार डाला।
तुम अब नहीं रहे लेकिन मैं सोचता हूँ तुम कौन थे? तुम्हारे बारे में मुझे बस इतना पता है कि तुम 15 साल के थे और दसवीं में पढ़ते थे। मेरे पास भी मेरी एक तस्वीर है, 15 साल की, बिलकुल तुम्हारी जैसी।
मैं सोच रहा हूँ अब जो तुम नहीं रहे या अब जब तुम्हें मिटा दिया गया है उससे क्या नहीं रहा है? तुम अपनी क्लास में जैसे भी छात्र रहे होगे लेकिन तुम्हारे भीतर भी जिज्ञासाएं कुलबुलाती होंगी। तुम समझना चाहते होगे कि आकाश का रंग नीला क्यों है?
तुम्हारे मन में ढेरों सवाल होंगे, विज्ञान को लेकर, आसपास हो रही चीज़ों को लेकर और जिस समाज में हम रहते हैं उसको लेकर। तुम उन्हें किसी न किसी से पूछते भी होगे।
तुम्हारे आसपास के लोग इन सवालों के जवाब देने की कोशिश करते होंगे पर कई सवालों के उत्तर तुम्हें नहीं मिले होंगे और तुमने ढेर सारा वक़्त उनके बारे में सोचते हुए बिताया होगा।
लेकिन जुनैद, तुम्हें सबसे बड़े जिस सवाल का उत्तर नहीं मिलेगा वह ये है कि तुम्हें क्यों मार दिया गया? जब तुम ट्रेन में दाखिल हुए होगे तो तुम्हारी आँखों में खरीदारी करके घर लौटने की ख़ुशी चमक रही होगी और होगी घर पहुंचकर ईद मनाने की जल्दी। तुमने अपने अगल-बगल बैठे लोगों को देखा होगा, तुमने सोचा होगा कि क्या वे ईद पे घर जा रहे हैं और फिर ईद का नाम मन में आते ही तुम खुश हुए होगे।
तुम्हारे अगल बगल के लोग भी बिलकुल तुम जैसे होंगे, अपनी अपनी तकलीफों और अपनी अपनी खुशियों के साथ। फिर अचानक कुछ हुआ होगा, तुम्हारे सिर की टोपी घूमने लगी होगी, वैसे ही जैसे धरती घूमती है, और सब बदल गया होगा। तुम्हारे अगल बगल के लोग अचानक से इंसान से कुछ और हो गए होंगे, तापमान बहुत उंचाई पर पहुँच गया होगा और तुम्हारी घूमती टोपी रुक गई होगी, तुम्हारे वजूद को हमेशा हमेशा के लिए मिटा देने के लिए। पर तुम्हारी सीट के आसपास जो लोग यह सब कुछ देख रहे होंगे, वो जम गए होंगे। टीवी पर एक पत्रकार कह रहे थे कि वे जीवन भर के लिए बीमार हो जाएँगे, वे तुम्हारी मौत को अपनी आँखों में लेकर जिएंगे।
क्या कोई आगे नहीं आया होगा तुम्हारे लिए? क्या उनकी सीटों का तापमान इतना कम हो गया होगा कि वे उठ नहीं पाए होंगे। तुम उनके सामने चाकुओं से गोद कर मार दिए गए होगे और वे बस देखते रहे होंगे। क्या मुझे यह सब नहीं दिख रहा है? क्या मुझे तुम्हारा मार दिया जाना ज़िन्दगी भर याद नहीं रहेगा?
अब जब भी मैं दिल्ली से घर जाने के लिए ट्रेन में बैठूँगा, मेरी नज़रें तुम्हें तलाशेंगी, और साथ ही तलाशेंगी उन लोगों को जिन्होंने बेरहमी से तुम्हे मार डाला। मुझे नहीं पता तुम्हें मार दिए जाने के पीछे असली वजह क्या रही होगी। राह चलते आदमी से कोई इतनी पुरानी दुश्मनी तो नहीं रखता कि सीट के विवाद में उसे चाकुओं के गोद कर मार दे। अखबार बता रहे हैं कि तुम्हें मारने वाले तुमपर चिल्लाए थे कि तुम गौमांस खाने वाले थे। मैं यह कभी समझ नहीं पाता कि रक्षा के नाम पर हत्या कैसे संभव है।
क्या जब चाकू का एक वार तुम्हारे सीने में उतरा होगा उससे किसी गाय की रक्षा हुई होगी? क्या तुम्हारे मार डालने वाले लोगों ने अपनी ज़िन्दगी में कभी किसी गाय की सेवा की होगी?
इस सवाल का उत्तर मुझे पता है, और मुझे यह भी पता है कि उन लोगों को धर्म के नाम पर ही सही, गाय से बिलकुल प्रेम नहीं होगा और जुनैद तुम्हारी चीखें इतिहास के पन्नों में इस बात को दर्ज कर रही होंगी। कुछ ही दिन पहले सुबह सुबह जब मैंने टीवी ऑन किया तो एक और खबर आई थी। कश्मीर में लोगों की रक्षा के लिए तैनात पुलिस अफसर अयूब को मार दिया गया था। मैंने टीवी बंद कर दिया था, मैं उनके परिजनों की चीखें नहीं देखना चाहता था। मैं उस बेबसी का सामना नहीं करता चाहता था जिसका सामना अयूब की हत्या होते देखने वालों ने किया होगा।
वे कौन लोग होते हैं जो कभी भी किसी जुनैद, अयूब, पहलू खान और अखलाक को मार डालते हैं? अख़बार, सोशल मीडिया और चैनल बता रहे हैं यह भीड़ है और भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता।
भीड़ कोई नहीं होती, पर भीड़ बनती कैसे है? हम जैसे ही आम लोगों से न? जुनैद तुम्हारी हत्या करने वालों के तुम जैसे बच्चे, छोटे भाई या भतीजे होंगे या वे भी तो कभी ठीक तुम्हारे जैसे रहे होंगे। वे भी त्योहारों में चहकते हुए घर गए होंगे और उन्हें भी घर पहुँचने की जल्दी रही होगी। पर वे जुनैद से जुनैद के हत्यारे कैसे बन गए? वह कौन सी चीज़ रही होगी जिन्होंने उन्हें आम आदमी से एक उन्मादी बेरहम कातिल भीड़ में बदल दिया होगा?
तुम्हें देखकर उनके भीतर क्या हुआ था जुनैद? तुम्हें जब वे चाकुओं से गोद रहे थे तो तुमने उनकी आँखों में देखा होगा। तुम्हें चीखना नहीं चाहिए था जुनैद। ये कुछ सवाल थे जो तुम्हें उनसे पूछ लेने चाहिए थे।
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