ख्वाजा अहमद अब्बास की रूह कभी हदों की मुहताज नहीं रही। ज़िंदगी की ज़द्दोज़हद में भी इस इंसान की पहचान उसी तेवर से कायम रही। उम्रदराजी के सत्तरवें मुकाम पर जानलेवा बीमारी के शिकार होकर वे अस्पताल में पडे रहे। आंखे साथ नहीं दे रही थी फिर भी अपने-पराए की पहचान उनको थी। दोस्तों के के बीच वे ख्वाजा के नाम से मशहूर हुए। उनके दोस्तों की फेहरिस्त इस मायने में बहुत अनोखी है कि उसमें हर उम्र के लोग शामिल थे।
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